नीलकंठी
आज फिर तुम्हारा वही सवाल जो पिछले कुछ दिनों से तुम लगभग हर रोज़ मुझसे पूछती आ रही हो, "तुम अपनी किताब में मेरी कहानी लिखोगे ना अजय, बोलो ना।"
तुम क्यों चली आती हो मेरे सपने में हर रोज़ अपना वही सवाल लेकर और मैं टाल देता हूं कोई ना कोई बहाना बनाकर । पर लगता है आज मेरा कोई बहाना नहीं सुनोगी तुम। तुम हो ही इतनी जिद्दी। मैं कुछ भी लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा आजकल।लिखना बहुत तकलीफदेह होता जा रहा है मेरे लिए।सारे किरदार जैसे मेरे जेहन में डेरा डाल कर बैठ जाते हैं लंबे समय तक। मैं चाह कर भी आजाद नहीं कर पाता खुद को और तुम, तुम तो मेरे जेहन से निकली ही नहीं कभी। तुम्हारी कहानी लिखते हुए महसूस कर रहा हूं तुम्हें । जैसे मैं कहानी को नहीं लिख रहा, मैं जी रहा हूं उसे तुम बनकर।
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भाई बहनों में सबसे बड़ी, बचपन में ही प्रौढता ओढ़ने पर मजबूर तुम। बीमार पिता और लाचार मां की मजबूरियों से दबी।देख रहा हूं तुम्हें........तुम रो रही हो।खून से लहुलुहान घुटने, शायद चोट लगी है तुम्हें। हां, हां , तुम कह रही हो मां से, "मां, भाई के लिए दूध लेकर आते हुए रास्ते में पत्थर की ठोकर लग कर गिर पड़ी और पूरा दूध बह गया। मां अब मुन्ना क्या पीएगा?"मां को तुम्हारी चोट की फ़िक्र है और तुम्हें भाई की भूख की चिंता।अब और दूध नहीं आ सकता क्योंकि वो अंतिम नोट था जो मां ने बड़े भारी मन से निकाल कर दिया था। रोते-रोते ही सो गए उस दिन सब,भाई भूख से, तुम चोट से और मां अपनी लाचारी पर।
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ये क्या???? क्या देख रहा हूं मैं , तुम बदहवास सी हालत में कहां से भागी आ रही हो? रोई रोई सी हो रही हो, घबराहट तुम्हारे चेहरे पर साफ झलक रही है। पर किसे बताओगी, क्या हुआ तुम्हारे साथ? किसी दरिंदे की...
तुम क्यों चली आती हो मेरे सपने में हर रोज़ अपना वही सवाल लेकर और मैं टाल देता हूं कोई ना कोई बहाना बनाकर । पर लगता है आज मेरा कोई बहाना नहीं सुनोगी तुम। तुम हो ही इतनी जिद्दी। मैं कुछ भी लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा आजकल।लिखना बहुत तकलीफदेह होता जा रहा है मेरे लिए।सारे किरदार जैसे मेरे जेहन में डेरा डाल कर बैठ जाते हैं लंबे समय तक। मैं चाह कर भी आजाद नहीं कर पाता खुद को और तुम, तुम तो मेरे जेहन से निकली ही नहीं कभी। तुम्हारी कहानी लिखते हुए महसूस कर रहा हूं तुम्हें । जैसे मैं कहानी को नहीं लिख रहा, मैं जी रहा हूं उसे तुम बनकर।
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भाई बहनों में सबसे बड़ी, बचपन में ही प्रौढता ओढ़ने पर मजबूर तुम। बीमार पिता और लाचार मां की मजबूरियों से दबी।देख रहा हूं तुम्हें........तुम रो रही हो।खून से लहुलुहान घुटने, शायद चोट लगी है तुम्हें। हां, हां , तुम कह रही हो मां से, "मां, भाई के लिए दूध लेकर आते हुए रास्ते में पत्थर की ठोकर लग कर गिर पड़ी और पूरा दूध बह गया। मां अब मुन्ना क्या पीएगा?"मां को तुम्हारी चोट की फ़िक्र है और तुम्हें भाई की भूख की चिंता।अब और दूध नहीं आ सकता क्योंकि वो अंतिम नोट था जो मां ने बड़े भारी मन से निकाल कर दिया था। रोते-रोते ही सो गए उस दिन सब,भाई भूख से, तुम चोट से और मां अपनी लाचारी पर।
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ये क्या???? क्या देख रहा हूं मैं , तुम बदहवास सी हालत में कहां से भागी आ रही हो? रोई रोई सी हो रही हो, घबराहट तुम्हारे चेहरे पर साफ झलक रही है। पर किसे बताओगी, क्या हुआ तुम्हारे साथ? किसी दरिंदे की...