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दुखद कहानी एक प्रसन्न राज्य की । part 2
एक दिन राज्य में कुछ ऋषिगण आए । वे राजा से मिलना चाहते थे । उन्होंने ने राजा को संदेश भिजवाया की वे उनसे भेंट करना चाहते है । किन्तु राजा कुछ कार्य में व्यस्त थे । उन्होंने ऋषिगण को संदेश भिजवाया की वो महल में आजाए । वे उन्हें लेने नई जा सकते कुछ कारण सर । ऋषिगण महल पहोचे । तब भी राजा उनसे मिलने नहीं आए । राजा अपने काम में व्यस्त होने के कारण ऋषियों का आतिथ्य सत्कार नहीं कर पाए । उस कारण ऋषिगण नाराज हो कर उनसे मिले बिना चले गए। पर कुछ दिन बाद उन्होंने फिर संदेश भिजवाया राजा से भेंट करने के लिए । राजा ने कहा ठीक है उनको आमंत्रण भिजवाया जाए । ऋषिंगण फिर महल आए । इस बार राजा उनके आतिथ्य सत्कार में प्रस्तुत थे । उनको आदर सम्मान पूर्वक महल के भीतर ले गए।
राजा ने ऋषिगण के आने का कारण पूछा । ऋषियों ने बताया के , राजा एक विपदा आन पड़ी है । हमारे राज्य की पूर्व दिशा में एक तालाब है । तालाब का पानी विशेला हो गया है । और तालाब का पानी पुरे राज्य में सब लोग पिते है । हमने तालाब में कुछ विशेले प्राणियों को देखा है । हमे तालाब शुद्ध करना होगा । राजा ने कहा कि कोई बात नहीं वो उनकी सहायता अवश्य करेंगे । राजा ने अपने दोनों छोटे भाईयो को और अपनी एक सेना की टुकड़ी को ऋषिगण के साथ भेजा । चलते चलते शाम हो गई । सभी लोग विश्राम करने के लिए रुके । कुछ समय बाद रात हो गई । अजीब अजीब सी आवाजें आने लगी । सभी लोग डरने लगे । पेड़ों पर हलचल होने लगी । और एक सुंदर सी कन्या आई । दोनों राजकुमार कन्या के पीछे पीछे चले गए । सेना और ऋषिगण छीप गए । सुबह होने तक उन्होंने राजकुमार के लौटने का इंतजार किया किन्तु वे नहीं आए । तभी सबने उनको खोजने का कार्य आरंभ किया । सुबह से शाम हो गई और शाम से रात । फिर वही सुंदर कन्या रात को आई । सभी लोग डर गए पर सेना में से एक सैनिक ने हिम्मत दिखाई । वो उस कन्या के पास गया और बोला हमारे राजकुमार कहा है । वो कल तुम्हारे पीछे पीछे गए थे । पर वापस नहीं लौटे।
सैनिक के बोलते ही वो कन्या एक राक्षस के रूप में आ गई और बोली के वो अपनी जादुई शक्तियों का उपयोग करके अपने लिए भोजन ढूंढती है ।
और वो पूर्व दिशा में आए हुए तालाब में रहती है । असल में वो एक राक्षस स्त्री है जो अपने जादू से लोगो को वश में करती है फिर उन्हों अपना आहार बनती है । ये सब सुनते ही सब लोग डर के मारे इधर उधर भागने लगे । किन्तु कोई बच नहीं पाया । सब मारे गए । राक्षस स्त्री उनको अपना आहार बना चुकी थी । कुछ समय बाद महल में चर्चा होने लगी की राजकुमार और उनके साथ गए हुए ऋषिगण और सेना वापस नहीं लौटी है । राजा तक ये खबर पोहची । राजा ने खोज सुरु करवाई । राजकुमार और ऋषिगण और सेना को ढूंढ़ने के लिए ।
राजा और सैनिक सब साथ में निकले । चलते चलते वे भी उसी रास्ते पहोंचे जहा राक्षस स्त्री रहती थीं ।
राजा और उसकी सेना का भी वही हश्र हुआ जो राजकुमार , ऋषिगण और सेना का हुआ था । राज्य में त्राहि त्राहि मची हुई थी । क्योंकि अभी कोई सुरक्षित नहीं था । ना राजपरिवार ना ही प्रजा । हर कोई डर में अपना जीवन गुजार रहा था । एक पल भी चैन की सांस नहीं ले पाते थे । हर पल डर लगा रहता था । इन सब के बारे मैं जैसे ही राजा माधव को ज्ञात हुआ वह अपनी पुत्रियों को मिलने प्रसन्न पूरा आए ।
उनसे अपनी पुत्रियों का दुख देखा नहीं गया । वह रो पड़े । उन्होंने अपने राज्य से बड़े ज्ञानी ऋषिमुनियोको बुलवाया और एक यज्ञ करवाया राज्य की सूख शांति के लिए। किन्तु समस्या अभी टली नहीं थी । वह राक्षस स्त्री अभी भी जीवित थी । प्रसन्न पूरा की रानी ने संकल्प लिया की वे उस राक्षस स्त्री को जिवित नहीं छोड़ेगी ।
उस दिन बाद रानी कई लोगो से सुझाव लेने लगी ।
फिर एक दिन उसे पता चला की यदि उस राक्षस स्त्री का रक्त एक माटी का पुतला बनाकर उसमे रखा जाए और फिर उसे रात के अंधेरे में जलाया जाए तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। फ़िर क्या ! रानी ने राक्षस स्त्री को मारने की ठान ली। उसने अपनी वेशभूषा बदलकर पुरुष के कपड़े पहने और जंगल तरफ निकल पड़ी। और उस राक्षस स्त्री के साथ युद्ध किया । और उसका रक्त तलवार पर लेकर महल की तरफ दौड़ी । राक्षस स्त्री उसके पीछे पीछे महल की ओर अग्रसर हुई। महल में राजदासीओ को कहकर पुतला बनवाया था ।
रानी बचते बचाते महल पहोची । तब तक रात हो चुकी थी । रानी ने पुतला मंगवाया और जल्दी से उस राक्षस स्त्री का रक्त पुतले पर छांट दिया । तब तक वो राक्षस स्त्री भी पहुंच गई। रानी ने जल्दी से पुतले को आग लगाई और वह स्त्री कराहने लगी । वह जीवित ही महल के सामने जल के मर गईं । उसके शरीर का एक अंश भी नहीं बचा था। राज्य और राजपरिवार को उस राक्षस स्त्री से मुक्ति मिल गई । किन्तु राक्षस स्त्री मरते मरते श्राप देके गई की यह महल , इसमें रहने वाले लोग , राजपरिवार ओर आने वाली पीढ़ी सबका सर्वनाश होगा। कोई नहीं बचेगा । कुछ सालो में सब जल के खाक हो जाएगा । और राक्षस स्त्री का श्राप कुछ सालो बाद सच होने लगा । पहले रानी की मृत्यु हुई फिर उनकी बहनों की ओर उनके बाद उनके पुत्रों की । धीरे धीरे सब ख़तम हो गया ओर उनकी आत्माएं वही भटकती रह गई । उनको मुक्ति नहीं मिली । धीरे धीरे समस्त राज्य का नाश हो गया । कुछ लोग समय रहते पलायन कर गए । वह बच गए । प्रसन्न पूरा राज्य बड़े ही दुखद रूप से विनाश का भागी बना । पूरा राज्य खंडर समान हो गया था।
आज भी २०० वर्षों बाद उनकी आत्मा मुक्ति के लिए भटक रही है । वे किसीको परेशान नहीं करती है । बस रात को उनके रोने की आवाज़ सबको सुनाई देती है ।
और अब उस जगह के पास छोटा सा गाव बस चुका है। लोग खुशी से रहते हैं। बस उस महल के पास नहीं जाते ।
यह एक दुखद कहानी थी प्रसन्न पूरा की जहा खुशियां तो बहोत थी पर किस्मत का लिखा कोंन बदल सका है ।
बुराई का अंत तो हुआ किन्तु लोगो की हानी भी बहुत हुई।



इससे पता चलता है कि हर कहानी सुखद नहीं होती। कुछ बदनसीबी होती है तो कभी किस्मत साथ नहीं देती है।

( यह कहानी काल्पनिक हैं , यह कहानी केवल मनोरंजन के लिए है )

© Devi
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