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सुनो न आ जाओ मेरे पास
ये कहानी उस जगह से शुरू होती है जहाँ लोगो एक कभी किसी से मिलने के लिए अंजान बना करते थे,
उन लोगो मे मैं भी था नमस्कार मेरे दोस्तों मेरा दिलराज़ है मैं जब अपनी पढ़ाई में व्यस्त था तब मेरी ज़िंदगी मे बहुत से उतार चढ़ाव आये,
मेरे घर आर्थिक स्थिति कुछ ज़्यादा अच्छी नही थी मैं एक बड़ी बीमारी का सामना कर रहा था,
मेरी इस बीमारी से मुझे मेरे माँ बाप दूर पढ़ने नही भेजना चाहते थे लेकिन मैं अपनी जिद्द पर बाहर पढ़ने चला गया,

कुछ दिन रहने में समस्या हुई लेकिन धीरे - धीरे मैं वहाँ रहने लगा और वहाँ मेरा मन्न लगने लगा !

अगले दिन मेरा कॉलेज जाना हुआ और मैं कॉलेज गया मेरा मन्न पढ़ाई में पहले से लगता था और मैं अपने जीवन मे खुश रहता था वहाँ भी पढ़ाई के असर अच्छा दिखता पड़ रहा था क्योंकि मैं विद्यालय पूरे 2 महीने देर से गया था !

आध्यापक की नज़रों में मेरा अलग ही अच्छा नज़रिया था जो उनका पसंदीदा विद्यार्थियों में एक मैं भी बन चुका था,


पूरे 15 दिन बाद वहाँ एक सारा नाम की लड़की से पहली दफा बात हुई मेरी वो भी मेरी तरह 2 महीने देर से कॉलेज आयी थी पहले सिर्फ थोड़ा बहुत बात हुई फिर कुछ दिन बाद नो आदान प्रदान हुए हम दोनों के !

कुछ दिन बाद वो रात को कॉल करने लगी मुझे धीरे-धीरे हम दोनों में ज़्यादा रात तक बाते होना शुरू हो गयी उस दिन से हम दोनों एक दूसरे के साथ अच्छी - अच्छी बात हुई
बाते 6 से 8 महीने हुए हम अच्छे दोस्त कॉल के कुछ दिन बाद ही बन गए थे !

लेकिन 8 महीने बाद एक दिन विद्यालय के पुस्तकालय में हम दोनों की बात करते करते एक दूसरे से अपने दिल की बात कह दिए एक दूसरे
उस दिन के बाद से हम दोनों को एक प्रेम संबंध में आ गए और उस दिन के बाद हम दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहने लगे प्यार काफी अच्छा था हमारा और हम दोनों काफी खुश थे एक दूसरे के साथ !

वो उस दिन के बाद से प्यार से dilu कह कर बुलाने लगी और मैं उसे saru कह कर बुलाने लगा !

देखते देखते हम दोनों की पढ़ाई को एक साल पूरे हए हम साथ- साथ कॉलेज जाने और नए class से हम साथ रहने लगे एक दूसरे के साथ फिर ऐसे ही कब 2 साल बीत गए पता ही न चला !

फिर हम दोनों ने final exam से पहले हम दोनों ने अपनी फैमिली को मनाया और वो मान गए फिर जब पढ़ाई पूरी हुई तब हम दोनों ने एक दूसरे के साथ शादी कर ली

उस दिन में बाद से जब भी मैं काम मे व्यस्त रहूं तब वो फ़ोन कर के मुझसे क्या खाओगे ये बात पूछती थी और जब भी किसी काम से शहर से दूर जाऊं तो जब भी मेरी याद उसे याद आती तब
ये भी बात वो बोलती --(सुनो न आ जाओ मेरे पास) मुझसे और आज हमारा जीवन ऐसा जैसा हमने कॉलेज में बिताया करते थे

धन्यवाद
DRx Pradumna Pandey