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बड़ी हवेली (फ़ार्म हाउस)
बड़ी हवेली पहुंचते ही तन्नू ने शहनाज़ को सारी बातें बताईं। शहनाज़ सारी बातें सुनकर उर्मिला के ही पक्ष में थी। अगले दिन तनवीर ने उर्मिला और उसके परिवार को बड़ी हवेली लाने के लिए गाड़ी भेज दी।
दोपहर तक अस्पताल का सारी कार्यवाही पूरी करके उर्मिला अपने परिवार के साथ बड़ी हवेली पहुँची। शहनाज़ ने उसे उसका कमरा दिखा दिया, बड़ी हवेली के कमरे काफ़ी बड़े और अलीशान थे इसलिए शहनाज़ ने उन्हें नीचे के फ्लोर पर दो बड़े कमरे दे दिए।

रात में डिनर के बाद तनवीर ने उन दोनों को नैनीताल जाने की योजना के बारे में बताया। तनवीर ने कहा "कमांडर अपने सीने में कोई ख़ास राज़ दबाए है और वह राज़ क्या है ये सिर्फ नैनीताल पहुंच कर ही पता चलेगा। उसने उर्मिला को भी यहाँ इसी ख़ास मकसद से भेजा था", तनवीर ने उन्हें अब तक डायरी के बारे में और उन हीरों के बारे में नहीं बताया था।

"मैंने कल अपने एक दोस्त को बुलवाया है जो नैनीताल जाने में मेरी मदद करेगा, दो लोग रहेंगे तो गाड़ी ड्राइव करने में मदद मिलेगी, उसे ड्राइविंग का काफ़ी तजुर्बा है, उसका नाम अरुण और वह मेरे साथ ही पढ़ता है इलाहाबाद में, वह भी यहीं कानपुर का ही रहने वाला है, मैंने कल ही उससे मिल कर उसे नैनीताल चलने के तैयार कर लिया था, साथ ही अपने वालिद की गाड़ी भी उसे दिखा दी, जिसमें सफ़र तय करना था, कल दोपहर को हम दोनों यहीं से अपने सफ़र के लिए निकलेंगे, तुम दोनों सारी तैयारियां कर देना और हवेली की देखभाल करना ", तनवीर उन दोनों को सब कुछ समझाता है।

शहनाज़ और उर्मिला सारी बातें अच्छे से सुन रहीं थीं, फिर तनवीर से सहमत होकर अपने अपने कमरों में सोने चली गईं।

अगले दिन सुबह ही अरुण बड़ी हवेली पहुँच जाता है । शहनाज़ उसे हॉल में बैठा देती है, थोड़ी देर बाद तनवीर उससे मिलने आता है और दोनों अन्दर डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए बैठ जाते हैं। उर्मिला नौकरों की सहायता से नाश्ता टेबल पर रखवा कर, तनवीर की अम्मी के कमरे में चली जाती है।

नाश्ता करते ही तनवीर और अरुण गैराज की ओर चले जाते हैं, जहाँ दोनों मिलकर कार का अच्छी तरह से निरीक्षण करते हैं। सफ़र का सारा ज़रूरी सामान लेकर दोनों चलने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

शहनाज़ और उर्मिला तनवीर को यकीन दिलाती हैं कि अपनी अम्मी की तबीयत को लेकर बेफिक्र रहें। तनवीर और अरुण उन दोनों को अलविदा कह कर सफ़र पर निकल पड़ते हैं। उन्हे काफ़ी लम्बा रास्ता तय करना था। तनवीर ने अपने वालिद की डायरी अपने पास ही रखी थी ताकि वह उसे बार बार पढ़कर सारी जानकारी ले सके, कहीं ऐसा न हो कि कोई विशेष जानकारी उससे छुट न जाए।

अपने कुछ दिनों के सफ़र के बाद तनवीर और अरुण नैनीताल हाई वे वाले फ़ार्म हाउस पर पहुँचे। दोपहर हो चुकी थी इसलिए दोनों थकावट के मारे हॉल में ही सो गए। फ़ार्म हाउस की चाबी तन्नू ने उर्मिला से ले ली थी।

"तुम आ गया...... हमको पता था तुम ज़रूर आएगा", एक अनजान सी आवाज़ तन्नू को सुनाई पड़ती है और उसकी नींद खुल जाती है। तनवीर इधर-उधर देखने लगता है पर कोई भी नहीं था, सामने अरुण एक सोफ़े पर सो रहा था। तनवीर ने घड़ी पर नज़र डाली तो शाम के पांच बज चुके थे। उसने अपने फ़ार्म हाउस को अच्छी तरह से घूम फिर कर देखा, फिर वो अपने वालिद के कमरे में चला गया जहाँ उसे रैक पर सजे दो हांथी दाँत के हाथियों की मूर्तियां दिखती हैं और ठीक उनके नजदीक ही दीवार पर उसे शेर की तस्वीर टंगी दिखती है, जिसके पीछे संदूक में कमांडर का कटा हुआ सिर रखा था। तनवीर पहले उन हाथियों की मूर्तियों की पीठ खोलकर देखता है जिनके अंदर 50-50 बड़े साइज़ के हीरे रखे हुए थे जिनकी कीमत करोड़ों में थी, पर उन्हें हासिल करने के लिए कमांडर से उसकी अनुमति लेनी थी या कमांडर का कोई अधूरा काम करना था ये तो सिर्फ कमांडर ही जानता था।

वहाँ से तनवीर बाहर निकल कर सीधा फ़ार्म हाउस के गार्डन में पहुंचता है जहां उसे पहले से ही एक माली काम करता हुआ दिखाई पड़ता है। वह उस माली के नज़दीक जाकर उससे पूछता है "नाम क्या है तुम्हारा, क्या तुम यहीं पर काम करते हो, कब से काम कर रहे हो यहाँ", तनवीर उस माली से एक साथ कई सवाल पूछ लेता है। माली पहले तो हाँथ जोड़कर खड़ा हो जाता है फिर तनवीर को देख कर कहता है "हमारा नाम रामू है सरकार, हम यहाँ पर 20 सालों से माली का काम कर रहे हैं, आप प्रोफेसर साहब के बेटे हैं न यानि हमारे छोटे मालिक, आपने आने की खबर दी होती तो सारी तैयारी कर लेते, रुकिए मैं अभी जाकर बाकी नौकरों को ख़बर करता हूँ, आपके खाने पीने की व्यवस्था करवाता हूँ ", इतना बोलते ही वह गाँव की ओर भागता है और वहाँ से तीन चार लोगों को ले आता है। उनमें से कुछ साफ़ सफ़ाई कर तनवीर और अरुण के सोने का कमरा साफ़ कर उनका सामान वहीं रख देते हैं और कुछ रसोई में जाकर दोनों के लिए खाने का इंतजाम करने लगते हैं।

इधर जैसे ही जैसे समय बीत रहा था तनवीर के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, उसके मन में एक भय घर करने लगा था कि अब तक केवल कमांडर के धड़ से ही सामना हुआ था, जो बिना सिर के कमज़ोर था, पर आज रात तो उसका सामना कमांडर के सिर से होना था जो काफ़ी शक्तिशाली था और कुछ भी कर सकता था। तनवीर को यह चिंता भी खाई जा रही थी कि कहीं कमांडर कोई जानलेवा योजना तो नही बनाए बैठा था। इन सभी बातों का जवाब तो सिर्फ कमांडर ही दे सकता था।
-Ivan Maximus
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