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जिंदगी की कहानी
जिंदगी किसी शब्दों में बया कर सके इतनी सरल नही ,
जब तक हम जिंदगी को समझने लगते हैं तब तक
जिंदगी खतम होने के कगार पर रहती हैं .

जन्म होता हैं उसके बाद १५ साल यू ही बचपने मे गुजर जाते हैं फिर पढ़ायी में लग जाते हैं ,
पढाई पूरी हुई की नौकरी की तलास मे रहते हैं
वो मिल जाय तो फिर खुद का परिवार बनाने मे लग जाते है ।
ये सब होते होते हम ३०-३५ के हो जाते हैं,
फिर बच्चे बढे होते हैं उनकी देखभाल फिर उनकी पढाई उनकी शादी कराते कराते ४५ के हो जाते हैं,
फिर नाती - पोती आ जाते हैं , तब तक हम ५५ के हो ही जाते हैं. फिर हमारा शरीर कमजोर होने लगता हैं , हड्डियो मे दर्द होने लगता हैं, ६० के उमर के बाद हम जीने के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं. फिर हमारे जाने का समय निकट आ जाता हैं ।
जब समय निकट आ जाता हैं तो हम भगवान का नाम जपने लगते हैं , जब सारी जिंदगी इधर से उधर भाग ने मे लगा दी , पर जिंदगी को जिया कितना , उसे समझा कितना ये कभी सोचा ही नही और जब शांति से सोचने का मौका मिला तो तब तक हमारा दुनिया को अलविदा कहने का वक़्त आ जाता हैं।
जिंदगी में उलझे हो ठीक है लेकिन खुद के अंदर थोडा सा बचपना जिंदा रखना वही तुम्हे खुलकर जीने में मदद करता हैं ।

इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले अपनी जिंदगी अपने तरीके से भी थोड़ा जी लेना ।

© alku