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काली कुर्सी
#कालीकुर्सी
सरिता और महेश अपने बेटे के लिए कुर्सी लेने के लिए मार्केट में जाते हैं।वह अपने बेटे के लिए सबसे बेस्ट कुर्सी देखना चाहते थे। सरिता और महेश कई दुकानों में घूम लेते हैं पर उन्हें कोई कुर्सी समझ में नहीं आती। फिर सरिता और महेश को एक बहुत ही बड़ा कुर्सियों का शोरूम दिखता है। तब सरिता और महेश उसे बड़े से शोरूम में जाते हैं। जहां पर कई तरह की कुर्सी देखते हैं। पर उन्हें वहां पर भी कोई कुर्सी अच्छी नहीं लगती ,जो वो अपने बेटे के लिए लें।
वो वापस जा ही रहे होते हैं, कि अचानक से सरिता की नजर एक कुर्सी पर पड़ती है। सरिता उसे भैया से उसको कुर्सी के बारे में पूछती है।भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है ,बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए।
तब नंद उन्हें कहता है ,कि यह कुर्सी तो बिक चुकी है।यह कुर्सी तो किसी के स्पेशल कहने पर बनवाई गई है। वह एक और से उन्हें नहीं दे सकते। यह जानकर सरिता उदास हो जाती है।क्योंकि उसे वह कुर्सी अपने बेटे के लिए पसंद आई थी। तब नंद उन्हें कहता है ,कि अगर आपको यह कुर्सी पसंद आ रही है ,तो हम एक ऐसे ही कुर्सी आपके लिए भी बना देंगे और पर उसमें थोड़ा टाइम लगेगा। सरिता झटपट मान जाती है और कहती है। कोई बात नहीं पर मुझे ऐसे ही कुर्सी चाहिए अपने बेटे के लिए। कोई बात नहीं अगर टाइम लगता है। पर ऐसी ही मुझे कुर्सी चाहिए।
दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी अलीशान कुर्सी को देखकर सरिता को वो पहले ही नजर में भा जाती है।उसे देखकर सरिता को ऐसे प्रतीत होता है। जैसे की किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी... इसीलिए सरिता अपने बेटे के लिए ऐसी ही कुर्सी लेना चाह रही थी।