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हिंदी भाषा और संप्रेषण 1
भाषा मानव जाति को मिला एक ऐसा वरदान है जिसके बिना मानव सभ्यता का विकास नहीं हो सकता। भाषा हमारे विचारों, भावों, संस्कारों, रीति-रिवाजों, प्रार्थना और ध्यान, सपनों में संबंधों और संचार में सभी जगह विद्यमान है संचार साधन और ज्ञान भंडार होने के बावजूद यह चिंतन-मनन का साधन है और प्रसन्नता का स्रोत है। भाषा अतिरिक्त ऊर्जा बिखेरती है, दूसरों में जोश पैदा करती है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति अथवा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ज्ञान का अंतरण करती है। भाषा मानव संबंधों को जोड़ती भी है और तोड़ती है। भाषा के बिना मनुष्य मात्र एक मूक प्राणी रह जाता है। इससे हम अपनी बात और मंतव्य का संप्रेषण दूसरों तक कर पाते हैं और इसी कारण हम अन्य प्राणियों से अलग हो जाते हैं। भाषा सर्वव्यापी है, किंतु कई बार यह न केवल भाषाविदों के लिए गंभीर वस्तु होती है, वरन् दार्शनिकों, तर्कशास्त्रियों, मनोविज्ञानियों, विज्ञानियों, साहित्यिक आलोचकों आदि के लिए भी होती है। वस्तुतः भाषा एक बहुत ही जटिल मानव वस्तु है इसलिए यह जानना आवश्यक है की भाषा क्या है? इसी के साथ हिंदी भाषा के स्वरूप और इसके विकास के परिप्रेक्ष्य के बारे में जानकारी होना भी आवश्यक है।
#भाषा_और_संप्रेषण

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© SunitaShawMK