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"सोच"
"नाला नाला ज़िन्दगी" गंदगी से भरी ज़िन्दगी! मगर समाज की सोच से बहुत भली और पाक थी फिर भी!
नाले की गंदगी तो हाथ धो लेने से!नहा लेने से साफ़ हो जाती थी मगर समाज की सोच?? इसका तो कोई इलाज ही नहीं था!

करिश्मा को सारी रात नींद नहीं आई!वह बार बार करवटें बदल रही थी!
क्या छोटी नगरी के लोगों को बड़े ख्वाब देखने का कोई अधिकार नहीं था!?उन्हें साकार करना इतना बड़ा गुनाह था?

उसने एक बार और करवट लेकर अपनी दायीं तरफ देखा!माँ और बापू दोनों ज़मीन पर बिस्तर करके सो रहे थे!उन्ही गहरी नींद दिन भर की मेहनत के राज़ खोलती थी!बापू की खर्राटें सारे कमरे में गूंज रहे थे!छत पर लटकता पंखा हवा तो दे रहा था मगर जैसे किसी ने हलके चलने की क़दम दे रखी थी!वह उन दोनों देखती रही और एक आंसू निकल कर उसके तकिये में जज़्ब हो गया!
बापू और माँ नाले साफ़ करने का काम करते थे!बल्कि उनकी ज़ात के सारे लोग यही काम करते थे!जब वह पैदा हुई तो उसके ज़िंदादिल बापू ने उसका नाम करिश्मा रखा!उन्होंने कहा कि मेरी बेटी एक दिन करिश्मा करेगी!ना जाने कितनी दबी दबी हंसी उन्होंने सुनी मगर ध्यान नहीं दिया!ताऊ जी ने तो मगर साफ़ कह दिया!
"खेर मना..छोटे!बेटी हुई है कांधे पर बोझ आ गया तेरे" मगर बापू इसे बोझ नहीं अपना फख्र समझते थे लेकिन दुनिया वाले तो थे जो उसका हर वक़्त दिल ख़राब करते!करिश्मा ना कह कर हमेशा उसे हमेशा नाले वालों नाले वाली ही सुनने को मिला!बड़ी ज़ात के बच्चे उससे दूरी बना कर रखते!
गन्दी गन्दी कहकर उसे धक्का देते रहते! गांव में उनका कुआं अलग और बड़े ज़ात वालों के लिये सरकारी नलके अलग लगे हुए थे!उनकी ज़ात का कोई उन सरकारी नाल्को से पानी नहीं भर सकता था!
और उसकी ज़ात वालों में एक इकलौती वह लड़की पैदा हो गई थी!उन लोगों ने यूँ माँ बापू और करिश्मा की ज़िन्दगी ख़राब की हुई थी!
"लड़कियां ऊपर वाले की देन होती हैं!इनके नसीब से वह खुद हमें इतना देता है जो हम इनका कन्यादान करें!यह ना आपके नसीब का लेकर जाती है ना हमारे!अपने नसीब का लेकर जाती हैं" उसने बापू को हमेशा इस तरह की सफाइयां अपने परिवार वालों को देते सुना!

वह पढ़ना चाहती थी!बापू ने उसका दाखिला करा दिया!बस एक कोहराम था जो सारे गांव में मच गया!बापू को तो लोगों ने कालिख तक मल दी थी!उसे अच्छे से याद था वह दिन!जब उसने बापू को पहली बार रोते देखा!
वह उनके पेरो के पास बैठ गई!माँ ने कहा
"छोड़ दो ना अपनी हठ!उठा लो उसे सकूल से!ना जीने देंगे वरना यह लोग" माँ भी रो रही थी!

"जिन लोगों ने यह कालिख मेरे मुँह पर लगाई है ना!तू सब्र कर कवेरी!यही लोग मेरी बिटिया की वजह से मुझे शाबाशी भी देंगे! मैं अपनी बिटिया को शहर भेजूंगा" उनका अचानक का फैसला उसको और माँ को हैरान कर गया!बापू उसे छुप छुपाते रात में ही शहर ले आये!माँ ने बहुत गालियां खाईं!कि तेरा खसम कहाँ भाग गया अपनी लोंड़ियां को लेकर!मगर बापू की बात की मर्यादा ने उनका मुँह ना खुलने दिया!बापू उसका दाखिला एक अच्छे स्कूल में करा के और उसके हॉस्टल में रखवा के वापस हुए!वहां से करिश्मा के दिन तो बदल गए मगर गांव में उसके माँ बापू के साथ क्या हालात थे इसका उसके कभी पता नहीं चल सका!वह कभी पलट कर वापस नहीं आई!ना बापू ने कभी बुलाया!वह पढ़ती गई!समय की सीढ़ियां चढ़ती गई!बहुत बहुत दिनों बाद बापू आ जाते उससे मिलने!उसे एक भी रुपए की तंगी ना होने दी!आख़िरकार उसके बापू की मेहनत सफल हुई और अब वह डॉक्टर करिश्मा कहलाई जाने लगी!

बापू ने उसे एक बार भी गांव लौटने का नहीं कहा!उसे हैरत तो बहुत हुई मगर एक दिन वह खुद ही सरप्राइज देने की नियत से गांव पहुंच गई!
लोग उसे हैरानी से देख रहे थे!शायद पहचान नहीं पा रहे थे मगर जब वह अपने घूर के सामने रुकी तो जैसे सबको याद आ गया!

"आ गई भगोड़ी" किसी की आवाज़ आई!ग़ुस्से से करिश्मा के साराय बदन में आग फेल गई!इससे पहले वह कुछ कहती एक पत्थर उसके माथे पर आकर लगा!

"तेराय बाप ने बताया नहीं कि तेराय घूर का कोई भी आदमी इस गांव में ना दिखे!वरना पत्थरों से मारा जायेगा!तेराय बाप का गांव निकाला हो गया है!"

कोई बर्क़ सी करिश्मा पर गिरी!इतना बड़ा...