...

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पुताई
अब नहीं भाते, अब छू कर नहीं जाते,
ये मौसम।
अब मन पे एक मोटी परत जम गयीं हैं
जैसे एक दीवार पर साल दर साल पुताई करने से कितनी ही परते बन जाती है ना ठीक वैसे। और अब इन परतों की वजह से कोई मौसम मेरी मन की दीवारों को बाहर से तो गिला कर देते...