...

3 views

तुम्हारा कठिन होना...
दिन-ब-दिन तुम्हें जानना जैसे लगता है कोई किताब हो तुम...शुरुआत में तुम्हारी सहजता बताती है कि तुम काफी लोगों से घिरे हो मगर जैसे-जैसे किताब के पन्ने आगे बढ़ते है तुम कठिन होते जाते हो और लगता है तुम्हारे कठिन होने में मेरी सहजता कायम है ...जो मुझे आहिस्ते चलना सिखा रही हो और कह रही हो जैसे ठहरो और कुछ वक्त तुम्हें समझूं...जरा मुस्कुराती हूं तुम्हारी सहजता से तो कभी तुम्हारी कठोरता से सहम जाती हूं ।शायद...तुम्हारा कठिन होना तुम्हारे करीब कम लोगों के होने का प्रमाण भी है । पन्ने आगे बढ़ते जाते हैं...तुम कोई नई आकृति सी आंखों के सामने आकर मन में घर कर जाते हो मैं तुमसे कहती हूं...कुछ वक्त के लिए ओझ़ल होने के लिए पर तुम्हारी बच्चों सी ज़िद के आगे मैं आंखें बंद कर लेती हूं। शायद...करीब से महसूस करना चाहती हूं तुम्हें ...सहसा कोई आवाज आती अंतर्मन से तुम तो महज़ एक किताब हो जिसके पन्ने मैं एक-एक करके पढ़ रही हूं कभी अधरों पर मुस्कान लिए तो कभी माथे पर शिकन लिए ...
© श्वेता_साहिबा