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श्लोक
यावत्स्वस्थो ह्रायं देहो यावन्मर्त्युश्च दूरतः।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।।

श्लोक का अर्थ:
जब तक यह शरीर स्वस्थ तथा निरोग है और जब तक मृत्यु नहीं आती तब तक व्यक्ति को अपने कल्याण के लिए धर्मयुक्त आचरण- अर्थात पुण्य कर्म करने चाहिए क्योंकि करने-कराने का संबंध तो जीवन के साथ ही है। जब तक मृत्यु हो जाएगी, उस समय वह कुछ भी करने में असमर्थ हो जाएगा अर्थात कुछ भी नहीं सकेगा।

श्लोक का भावार्थ:
किसी को इस बात का ज्ञान नहीं कि मनुष्य का शरीर कब रोगों से घिर जाएगा। उसे यह भी मालूम नहीं कि मृत्यु कब होने वाली है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि जब तक वह जीवित है, अधिक-से-अधिक पुण्य कर्म करें, क्योंकि करने-कराने का संबंध तो जीवन से है। जब मृत्यु हो जाती है, तब सारे विधि-निषेध निरर्थक हो जाते हैं।