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मुझे फांसी तो नहीं होगी ना
भाग गई ,बस उस पिता ने इतना ही कहा और धम्म से वहीं पर सोफे पर बैठ गए ।मां अब तक अवाक थी एक शब्द उनके मुंह से नहीं निकल रहा था । भाई परेशान हर जगह पता लगाने की कोशिश कर रहा था । यह बेचैनी आज आनंदी के घर में थी ।

इन सब को छोड़कर आनंदी अब तक ट्रेन में बैठकर बहुत आगे निकल चुकी थी ,नए सफर पर नई मंजिल की तलाश में आज उसको सब कुछ बहुत सुहाना लग रहा था । उसके देखे सारे सपने उसको सच नजर आ रहे थे ।

सही भी तो था आज वह उसके पास जा रही थी ।जिससे उसने मंदिर में शादी की थी , जिससे उसने प्यार किया और अपना सब कुछ सौप दिया । उसने उसको दिल्ली बुलाया था शायद घर वालों के सामने कहती तो सब लोग इनकार कर देते । सब कुछ छोड़ छाड़ कर चुपचाप वह दिल्ली के लिए निकल चुकी थी। बहुत से सपने उसकी आंखों में तैर रहे थे , कुछ डर भी था पर डर से ज्यादा उसके अंदर वसंत से मिलने की खुशी थी ।

जी हां वसंत जो दिल्ली में जॉब करता था और शादी के बाद उसने आनंदी को वहीं आने को कह दिया और आनंदी उस पर इतना भरोसा करती थी कि बिना कुछ सवाल जवाब के पीछे-पीछे वहां तक जाने को आतुर थी ।शायद इस समय घर के बालों का प्यार भी उसके लिए बहुत कम हो गया था । जो माता-पिता खून पसीने की कमाई से उसको आज तक पढ़ाया लिखाया उसकी सारी जिम्मेदारी उठाई , पर आज आनंदी ने उन सब को एक झटके में अपने आप से दूर कर दिया था । खैर सोचते-सोचते आनंदी की ट्रेन में ही आंख लग गई । सुबह जब आंख खुली तो उसने देखा ट्रेन रूक चुकी है और न्यू दिल्ली सामने में लिखा हुआ था । प्लेटफार्म पर उसने अपना जो भी सामान हो साथ लाई थी झंझट से लिया और नीचे उतर गई ।

ठंड बहुत ज्यादा थी हार कपाने वाली , ये ठंड इससे पहले कभी नहीं देखा था क्योंकि वह तो मध्य मध्य प्रदेश थी । वहां इतनी ठंड नहीं पड़ती थी । स्टेशन पर वह व्याकुल होकर के दाएं बाएं सब तरफ देखने लगी ,पर वसंत उसे दूर तक नजर नहीं आया ।

उसने अपना मोबाइल निकाला और उसको वापस से फिर से उसे कॉल किया पर मोबाइल बंद था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।वह पागलों की तरह इधर-उधर देखे जा रही थी ।क्योंकि दिल्ली जिंदगी में वह पहली बार आई थी उसे यहां का कुछ भी पता नहीं था और महानगर वह तो बस अपने अंदर बाहर से आने...