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-: अनचाहा :-
कहने को तो इतेफाक कह दिया जाता है,
लेकिन हमें जिस बात का डर होता है, अक्सर वही सच हो जाता है, जिसकी हमने कामना कभी नहीं की, हम तो कामना करते हैं कि काश ऐसा ना हो, लेकिन होता वही है जो होना होता है।
बस हम ही अपने स्वार्थों के पुल बांध रहे होतें है और वह पुल हम कल्पनाओं से इतने मजबूत बांधते हैं कि जब अनचाहा सच होता है तो इस कदर टूट जाते हैं कि फिर किसी ना किसी को दोष देतें हैं और कमियां निकालने लगते हैं। सच तो यह है कि वो केवल एक कोरी कल्पना थी हमारी, सच तो पहले घट चुका था। हम ही उस सच को स्वीकार नहीं करना चाहते थे इस लिए कोरी कल्पनाओं में जी रहे थे और कल्पना के सपनों में आखिर कितनी देर तक जिया जाता है वह तो समय के साथ टूटने ही होते हैं। फिर भी हम हार नहीं मानते ओर टूटे हुए सपनो को फिर से जोड़ने लगते हैं। टूटा हुआ भी कभी जुड़ा है भला। हमें सच को स्वीकार कर लेना चाहिये क्योंकि सच तो एक दिन सच होने ही है, आखिर इसी का नाम तो जिंदगी है।
© Adv. Dhanraj Roy kanwal