बस इतना सा साथ 76
नेहा घर पहुँचती है , तो मम्मी और शीला आंटी शगुन में देने वाले तोफे तैयार कर रहे होते हैं।
नेहा- गिफ्टस ।
शीला आंटी - शीला आंटी, हम्म तेरे ससुराल
वालों के लिए।
नेहा- नमस्ते,आंटी जी । अभी ये ससुराल वालों
का कोटा खत्म नहीं हुआ क्या ।
नेहा की मम्मी- देख कैसे बोलती है ये लड़की।
( शीला आंटी हँसती हैं, पर कुछ कहती नहीं हैं। )
नेहा - अरे, तो क्या कहूँ। आप लोग रोज कुछ न
कुछ नया लेकर बैठ जाते हो और पूछो तो
ये तेरे ससुराल की तिल , ये तेरी साँस का ,
ये नंनद, ये बुआ.... अरे कितने तो मुझे
याद भी नहीं हैं।
( कहते हुए नेहा शगुन के गिफ्ट को देखने लगती है, तो नेहा की मम्मी उसके हाथ पर हल्का से थप्पड़ लगाते हुए कहती हैं। )
नेहा की मम्मी- बोला है हाथ मत लगाया कर ।
नेहा- ( शीला आंटी से ) देखो आंटी , ऐसे ही
करती हैं , शुभ नहीं होता , लड़की नहीं
छूती अपनी शादी के सामान को अच्छा
नहीं होता ।
शीला आंटी - इस मे तो मैं तेरी माँ के साथ हूँ , अच्छा तो नहीं होता ।
नेहा- ये तो हद है, कोई काम घर का नहीं करने
देती कि तेरे हाथ खराब हो जाएंगे और ये
सारे काम ये कह के नहीं करने देती कि
शुभ नहीं होता। मैं सही बोलूँ बोर हो जाती
हूँ।
शीला आंटी- हो ले थोड़े दिन बोर, फिर वो तेरी
सांस है ना वो तुझे सास भी ना लेने देगी ।
बहुत तेज है बुढ़िया।
नेहा - क्या आंटी , ऐसे मत बोलो ।
शीला आंटी- तेज को तेज ना बोलूँ तो क्या बोलूँ।
अरे उस दिन....
नेहा- नहीं, ये नहीं बोल रही मैं । ये जो आप
बुढ़िया बोल रहे हो इसके लिए बोल रही हूँ।
( शीला आंटी नेहा की मम्मी की तरफ देखती हैं। )
नेहा की मम्मी- मेरी तरफ मत देख । मुझे तो
सांस भी नहीं बोलने देती है।
शीला आंटी- ( नेहा की तरफ देखते हुए। ) छोरी,
तू तो ईब त ही पराई हो गई।
नेहा- इसमें पराई होने का कुछ नहीं है , लाॅजिक
है।
( इतने में उसके फोन पर मनीष का मैसेज आता है , hii का । नेहा भी रिप्लाई में hii भेज देती है। )
शीला आंटी- अच्छा यहाँ पर भी तूने अपनी
टीचरगिरी शुरू कर दी । वैसे क्या है तेरा ये
लाजिक।
नेहा- ज्यादा बड़ा नहीं है, छोटी-सी बात है। हम
बच्चे का नाम बड़ा सोच समझ कर रखते
हैं । दस लोगों से ( मनीष फिर मैसेज
करता है।
मनीष - फ्री हो कुछ बात करनी थी । नेहा रिप्लाई करने लगती है। तभी शीला आंटी बोल पड़ती है। )
शीला आंटी- थोड़ी देर इस टुनटुने को साइड रख
दे ।
नेहा- एक मिनट आंटी जी । ( फिर जल्दी से मनीष को रिप्लाई करती है। मनीष को रिप्लाई- अर्जेंट हो तो टेक्स्ट कर दो , बाद में कॉल करती हूँ। फिर फोन उल्टा कर रख देती है। ) सॉरी, मैं
क्या कह रही थी ।
शीला आंटी - बच्चे का नाम ....
नेहा- हाँ, बच्चे का नाम हम बड़ा सोच - समझ के
रखते, जिसका बड़ा अच्छा-सा मतलब
बन रहा हो । बड़े कारण हैं इसके पीछे,
पर एक जो सबसे खास और सीधा-सा
कारण है । वो ये कि माना जाता है , बच्चे
का जैसा नाम होता है उसका आचार
व्यावहार भी वैसा ही हो जाता है। है की
नहीं।
शीला आंटी - हम्म।
नेहा - और आमतौर पर ऐसा होता भी है । तो ये
तो एक रिश्ता है जिसे आप सांस कह कर
बुलाते हो। और सबको पता है जब हम
सांस बोलते हैं तो हम किस तरह के रिश्ते
की सोच रख बोलते हैं। इससे अच्छा है ,
आप वो बोलो। क्या बोलते हो वो आप
चौधरी - चौधरन।
(शीला आंटी कुछ नहीं कहती । )
नेहा- वरना जैसे आप बुलाते हो एक दूसरे को
मोनिका की मम्मी , राहुल की मम्मी ऐसे
भी बुला सकते हो।
( शीला आंटी हँसने लगती है। नेहा के दिमाग में भी मनीष के मैसेज चल रहे होते हैं। इसलिए आंटी की हँसी पर उसका ज्यादा ध्यान ही नहीं जाता है । )
आप करो , मैं आती हूँ। ( कहते हुए फोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है। मनीष के मैसेज पढ़ती है। )
मनीष - वो तुमने लेंस ले लिए।
फ्री होकर कॉल करना।
नेहा- लेंस ?
( मनीष का कोई जवाब नहीं आता । उधर शीला आंटी नेहा की मम्मी से कहती हैं । )
शीला आंटी- क्या खा कर पैदा किया था , इसे ।
हर बार कुछ ऐसा कह जाती है कि
सोचती हूँ अगर ये तेरी बेटी ना होती तो
मैंने इसे बहू बना लेना था ।
नेहा की मम्मी - मैं भी कई बार हैरान होती हूँ ,
पता नहीं कहाँ से इतना सोच लेती है।
शीला आंटी - इसे समझदारी कहते हैं , जो वक़्त
और हालात के साथ आ जाती हैं।
नेहा की मम्मी - अरे नहीं, ये बचपन से ऐसी ही
है। अब मैं कुछ कहूँगी तो तू कहेगी मेरी
है इसलिए कह रही हूँ। दस साल की
होगी शायद, गर्मियों की छुट्टियों में
अपनी नानी के गई हुई थी। तब दोनों
छोटी वाली बहनो में तकरार चल रही
थी, इतनी की दोनों ने चूल्हा भी अलग
कर रखा था । बच्चों के लिए तो दो चूल्हे
मतलब दो अलग तरह के खाने, पर पता
नहीं इसके सोच कहाँ से आई । पड़दे ही
नेहा छोटी वाली से बोली मौसी आप
दोनों में बंटवारा हो गया है क्या?
शीला आंटी - ( हैरानी में ) फिर।
नेहा की मम्मी- वो भी सुन चौक गई , पर बोले
क्या ? उसने नेहा से ही पूछ लिया कि
तुझे किसने कहा ? नेहा को नहीं पता था
उसका एक ज़वाब कई दरार भर देगा।
शीला आंटी- ऐसा क्या बोला?
नेहा को मम्मी- ( हल्का-सा मुस्कुराते हुए, पर
उस मुस्कुराहट में सुकून और खुशी दोनों थे। )
आपको नहीं पता मौसी , रसोई ही तो
घर को जोड़ती है । जब रसोई ही दो हो
गई, तो छत एक होने से क्या । आज
इतने साल हो गए उस बात को , दोनों
बहने आज एक साथ हैं। अनबन तो
अब भी होती हैं, पर इसकी बात याद आ
जाती है और सुलह कर लेती हैं कि जब
उस बच्ची को इतनी समझ है तो हमें क्यूँ
नहीं। मेरी माँ तो इसकी नज़र उतारे नहीं
थकती।
शीला आंटी- तू भी उतार देना , अपनी ही नज़र
ज्यादा लगती है बच्चों को ।
( तभी नेहा आ जाती है। )
नेहा - किसको लग गई नज़र ?
नेहा की मम्मी - दादी अम्मा को बताओ पहले। ( इतने में ज्योति आवाज लगाती है, नेहा को । )
ज्योति - तेरा फोन आ रहा है।
नेहा - हाँ , आई । ( कहते हुए फोन लेने जाती है , और फोन पर नाम देख फोन ले वापिस आंटी और मम्मी के पास आ जाती है। )
लो , और करो याद , आ गया फोन। ( और फोन की स्क्रीन दिखाती है, मनीष की मम्मी का फोन था। )
नेहा की मम्मी - तो उठा तो ।
नेहा - बहुत लंबा खींचती है , ( मम्मी को फोन देते हुए। ) लो , आप करो बात।
नेहा की मम्मी- ( मना करते हुए ) ना- ना ना तेरे
फोन पर आया है तो तुझ से बात करनी
होगी।
नेहा - पर मुझ से क्या बात करेंगी?
शीला आंटी - वो तो फोन उठाने पर पता चलेगा ।
ला मुझे दे फोन। ( कहते हुए हाथ बढ़ा फोन लेने लगती हैं। )
( नेहा की मम्मी , शीला आंटी को रोकते हुए। )
नेहा की मम्मी- क्या ला दे मुझे फोन? ( नेहा से )
इसको नहीं देना फोन, उस दिन लहंगे पर
सुन ली थी तेरी बात । बस अभी का हो
गया । ( नेहा से ) तू उठा फोन , और ये
मत बोलना की घर पर है वरना वो मेरा
कान खा जाएगी।
नेहा - ये सही है ।
नेहा की मम्मी- सही गलत बाद में करना , फोन
कट जाएगा।
( नेहा फोन उठाने लगती है, पर इतने में फोन कट जाता है। )
नेहा - कट गया। ( इतना बोल, फोन रख ही रही
होती है कि दुबारा फोन आ जाता है। ) फिर से
आया ।
शीला आंटी- ज्यादा ही उतावली हो रही है तेरी
सांस... मतलब चौधरन अपनी बहू से
बात करने के लिए।
नेहा की मम्मी - ( नेहा से ) तू उठा , फिर कट
जाएगा।
नेहा - हाँ , उठा रही हूँ। ( कह फोन उठाती है , और स्पीकर ऑन कर देती है। )
नमस्ते आंटी जी ।
मनीष की मम्मी- आंटी जी नहीं, मम्मी जी
बोलने की आदत डाल ले।
( शीला आंटी और मम्मी हँसती हैं सुन कर। )
नेहा - हाँ जी।
मनीष की मम्मी - बड़े बिजी रहते हो तुम सब तो ,
मैंने सोचा मैं ही फोन कर लेती हूँ।
( नेहा , आंटी और मम्मी की तरफ देखती है। )
अभी तो हो गई होंगी क्लास ख़त्म।
नेहा- हाँ जी ।
मनीष की मम्मी - फिर घर पर हो ।
( नेहा मम्मी की तरफ देखती है , मम्मी ना का इशारा कर रही होती हैं। )
नेहा - नहीं आंटी जी ... मम्मी जी मैं पार्लर आई
हुई थी ।
मनीष की मम्मी - अच्छा है , अच्छा है ये दिन
कौन-सा बार-बार आते हैं। मैंने भी मीनू
के लिए पार्लर बुक कर दिया है। फ़ुरसत
तो उसके पास भी नहीं है । शनिवार को
तन्मय के पेपर खत्म होंगे , तो सगाई के
दिन ही सुबह- सुबह आएगी।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - और कैसी चल रही हैं तैयारी।
नेहा - सही चल रही है, सब लगे हुए हैं तैयारी में।
मैं तो रोज मम्मी को एक नई लिस्ट के
साथ देखती हूँ।
मनीष की मम्मी - हाँ , ये शादी ब्याह का काम
ऐसा ही होता है। कभी भी शुरू करो
खत्म नहीं होता । आखिरी वक़्त तक
चलता रहता है कुछ न कुछ ।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - हम भी कल वो अँगूठी
वगैरह..... अँगूठी तो तुम ने भी ले ली
होगी ।
नेहा - हाँ जी।
मनीष की मम्मी - आजकल तो मार्केट में इतने
डिजाइन हैं, दिमाग घूम जाता है डिजाइन
देख कर।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - पर डिजाइन आजकल का ही
देखना। और अँगूठी तो ऐसी होनी चाहिए
जो दूर से हो दिखाई दे ।
नेहा - मतलब !
मनीष की मम्मी - नहीं ऐसा कोई मतलब नहीं है
मेरा , बस वो शादी और सगाई बार - बार
नहीं होते इसलिए बढ़िया से बढ़िया चीजें
लेनी चाहिए जो यादगार रहे।
नेहा - पर आंटी जी , यादगार तो पल होते हैं
चीजें थोड़ी । ( नेहा की मम्मी उसे रोकने लगती हैं। )
मनीष की मम्मी - पर पल भी तो चीजों से ही
बनते हैं।
नेहा - मुझे लगा इंसानों से बनते हैं। और वैसे भी
मेरी मम्मी-पापा ने साई बँधी की अँगूठी
बनवाई है। अपना डिजाइन दे कर ।
आपको भी डिजाइन दूँ, आप भी वैसी ही
बनवा देना , मेचिंग - मेचिंग हो जाएगा ।
( शीला आंटी नेहा की पीठ थप थपाती हैं। )
मनीष की मम्मी - ना- ना हम तो बनवा चुके ।
नेहा - हम्म , वैसे भी बनवाने में महंगी भी पड़ती है। पर वही है मम्मी ने कहा ये शादी सगाई बार - बार थोड़ी होती हैं। जो करो एक दम बढ़िया करो ।
मनीष की मम्मी - हम्म । वो तो पता है मुझे तुम
लोगों काम तो बढ़िया ही है।
नेहा - हाँ जी ।
मैं आपसे बाद में बात करती हूँ, वो मैं
पार्लर में हूँ।
मनीष की मम्मी - हाँ - हाँ बेटा आराम से कर
लेना ।
नेहा - हाँ जी । नमस्ते आंटी जी .... मम्मी जी ।
मनीष की मम्मी - नमस्ते बेटा नमस्ते। मिलते हैं
फिर ।
नेहा - हाँ जी । ( कह फोन रख देती है। फोन
रखते ही नेहा की मम्मी कहती हैं । )
नेहा की मम्मी - ऐसे बात करेगी तू अपनी सांस
से ।
नेहा- ऐसा भी कौन -सा गाली दे दी । वही कह
रही थी बार - बार नहीं होता है, खास हो ,
दूर से दिखना चाहिए तो बस वही बोला है।
( नेहा की मम्मी कुछ बोलने वाली होती हैं, पर शीला आंटी पहले ही बोल पड़ती हैं। )
शीला आंटी - ( नेहा की मम्मी से ) लड़की को
मत डांट , ऐसा कौन - सा कुछ गलत कह
दिया नेहा ने । देख इतना भी सुनना सही
नहीं। कभी - कभी उन्हीं की बातों में
जवाब दे देना चाहिए। ये छोड़ तू अकेले
- अकेले अँगूठी पसंद कर आई । अरे
मेरा भी तो जमाई है, मेरा भी हक देखने
का बनता है।
नेहा की मम्मी - ( एक बार नेहा की तरफ देखती
हैं , फिर आंटी से कहती हैं। ) वो अचानक से बन
गया था जाने का प्लान ।
शीला आंटी- फिर भी , सगाई एक बार होती है ।
अँगूठी भी एक बार बनती है। एक ही बार ....
नेहा की मम्मी- हाँ, तो एक बार तू भी देख आ ।
( नेहा से ) तू ले जाना आंटी को , एक बार उस
एक अँगूठी को देख लेंगी। ( सब थोड़ा हँसते हैं। फिर नेहा की मम्मी नेहा से कहती हैं )
पर ये मत सोचना तेरा वो बात करना
मुझे अच्छा लगा।
नेहा - हम्म।
( नेहा की मम्मी और शीला आंटी अँगूठी की बात करने लगते हैं ।)
continued to next part......
© nehaa
नेहा- गिफ्टस ।
शीला आंटी - शीला आंटी, हम्म तेरे ससुराल
वालों के लिए।
नेहा- नमस्ते,आंटी जी । अभी ये ससुराल वालों
का कोटा खत्म नहीं हुआ क्या ।
नेहा की मम्मी- देख कैसे बोलती है ये लड़की।
( शीला आंटी हँसती हैं, पर कुछ कहती नहीं हैं। )
नेहा - अरे, तो क्या कहूँ। आप लोग रोज कुछ न
कुछ नया लेकर बैठ जाते हो और पूछो तो
ये तेरे ससुराल की तिल , ये तेरी साँस का ,
ये नंनद, ये बुआ.... अरे कितने तो मुझे
याद भी नहीं हैं।
( कहते हुए नेहा शगुन के गिफ्ट को देखने लगती है, तो नेहा की मम्मी उसके हाथ पर हल्का से थप्पड़ लगाते हुए कहती हैं। )
नेहा की मम्मी- बोला है हाथ मत लगाया कर ।
नेहा- ( शीला आंटी से ) देखो आंटी , ऐसे ही
करती हैं , शुभ नहीं होता , लड़की नहीं
छूती अपनी शादी के सामान को अच्छा
नहीं होता ।
शीला आंटी - इस मे तो मैं तेरी माँ के साथ हूँ , अच्छा तो नहीं होता ।
नेहा- ये तो हद है, कोई काम घर का नहीं करने
देती कि तेरे हाथ खराब हो जाएंगे और ये
सारे काम ये कह के नहीं करने देती कि
शुभ नहीं होता। मैं सही बोलूँ बोर हो जाती
हूँ।
शीला आंटी- हो ले थोड़े दिन बोर, फिर वो तेरी
सांस है ना वो तुझे सास भी ना लेने देगी ।
बहुत तेज है बुढ़िया।
नेहा - क्या आंटी , ऐसे मत बोलो ।
शीला आंटी- तेज को तेज ना बोलूँ तो क्या बोलूँ।
अरे उस दिन....
नेहा- नहीं, ये नहीं बोल रही मैं । ये जो आप
बुढ़िया बोल रहे हो इसके लिए बोल रही हूँ।
( शीला आंटी नेहा की मम्मी की तरफ देखती हैं। )
नेहा की मम्मी- मेरी तरफ मत देख । मुझे तो
सांस भी नहीं बोलने देती है।
शीला आंटी- ( नेहा की तरफ देखते हुए। ) छोरी,
तू तो ईब त ही पराई हो गई।
नेहा- इसमें पराई होने का कुछ नहीं है , लाॅजिक
है।
( इतने में उसके फोन पर मनीष का मैसेज आता है , hii का । नेहा भी रिप्लाई में hii भेज देती है। )
शीला आंटी- अच्छा यहाँ पर भी तूने अपनी
टीचरगिरी शुरू कर दी । वैसे क्या है तेरा ये
लाजिक।
नेहा- ज्यादा बड़ा नहीं है, छोटी-सी बात है। हम
बच्चे का नाम बड़ा सोच समझ कर रखते
हैं । दस लोगों से ( मनीष फिर मैसेज
करता है।
मनीष - फ्री हो कुछ बात करनी थी । नेहा रिप्लाई करने लगती है। तभी शीला आंटी बोल पड़ती है। )
शीला आंटी- थोड़ी देर इस टुनटुने को साइड रख
दे ।
नेहा- एक मिनट आंटी जी । ( फिर जल्दी से मनीष को रिप्लाई करती है। मनीष को रिप्लाई- अर्जेंट हो तो टेक्स्ट कर दो , बाद में कॉल करती हूँ। फिर फोन उल्टा कर रख देती है। ) सॉरी, मैं
क्या कह रही थी ।
शीला आंटी - बच्चे का नाम ....
नेहा- हाँ, बच्चे का नाम हम बड़ा सोच - समझ के
रखते, जिसका बड़ा अच्छा-सा मतलब
बन रहा हो । बड़े कारण हैं इसके पीछे,
पर एक जो सबसे खास और सीधा-सा
कारण है । वो ये कि माना जाता है , बच्चे
का जैसा नाम होता है उसका आचार
व्यावहार भी वैसा ही हो जाता है। है की
नहीं।
शीला आंटी - हम्म।
नेहा - और आमतौर पर ऐसा होता भी है । तो ये
तो एक रिश्ता है जिसे आप सांस कह कर
बुलाते हो। और सबको पता है जब हम
सांस बोलते हैं तो हम किस तरह के रिश्ते
की सोच रख बोलते हैं। इससे अच्छा है ,
आप वो बोलो। क्या बोलते हो वो आप
चौधरी - चौधरन।
(शीला आंटी कुछ नहीं कहती । )
नेहा- वरना जैसे आप बुलाते हो एक दूसरे को
मोनिका की मम्मी , राहुल की मम्मी ऐसे
भी बुला सकते हो।
( शीला आंटी हँसने लगती है। नेहा के दिमाग में भी मनीष के मैसेज चल रहे होते हैं। इसलिए आंटी की हँसी पर उसका ज्यादा ध्यान ही नहीं जाता है । )
आप करो , मैं आती हूँ। ( कहते हुए फोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है। मनीष के मैसेज पढ़ती है। )
मनीष - वो तुमने लेंस ले लिए।
फ्री होकर कॉल करना।
नेहा- लेंस ?
( मनीष का कोई जवाब नहीं आता । उधर शीला आंटी नेहा की मम्मी से कहती हैं । )
शीला आंटी- क्या खा कर पैदा किया था , इसे ।
हर बार कुछ ऐसा कह जाती है कि
सोचती हूँ अगर ये तेरी बेटी ना होती तो
मैंने इसे बहू बना लेना था ।
नेहा की मम्मी - मैं भी कई बार हैरान होती हूँ ,
पता नहीं कहाँ से इतना सोच लेती है।
शीला आंटी - इसे समझदारी कहते हैं , जो वक़्त
और हालात के साथ आ जाती हैं।
नेहा की मम्मी - अरे नहीं, ये बचपन से ऐसी ही
है। अब मैं कुछ कहूँगी तो तू कहेगी मेरी
है इसलिए कह रही हूँ। दस साल की
होगी शायद, गर्मियों की छुट्टियों में
अपनी नानी के गई हुई थी। तब दोनों
छोटी वाली बहनो में तकरार चल रही
थी, इतनी की दोनों ने चूल्हा भी अलग
कर रखा था । बच्चों के लिए तो दो चूल्हे
मतलब दो अलग तरह के खाने, पर पता
नहीं इसके सोच कहाँ से आई । पड़दे ही
नेहा छोटी वाली से बोली मौसी आप
दोनों में बंटवारा हो गया है क्या?
शीला आंटी - ( हैरानी में ) फिर।
नेहा की मम्मी- वो भी सुन चौक गई , पर बोले
क्या ? उसने नेहा से ही पूछ लिया कि
तुझे किसने कहा ? नेहा को नहीं पता था
उसका एक ज़वाब कई दरार भर देगा।
शीला आंटी- ऐसा क्या बोला?
नेहा को मम्मी- ( हल्का-सा मुस्कुराते हुए, पर
उस मुस्कुराहट में सुकून और खुशी दोनों थे। )
आपको नहीं पता मौसी , रसोई ही तो
घर को जोड़ती है । जब रसोई ही दो हो
गई, तो छत एक होने से क्या । आज
इतने साल हो गए उस बात को , दोनों
बहने आज एक साथ हैं। अनबन तो
अब भी होती हैं, पर इसकी बात याद आ
जाती है और सुलह कर लेती हैं कि जब
उस बच्ची को इतनी समझ है तो हमें क्यूँ
नहीं। मेरी माँ तो इसकी नज़र उतारे नहीं
थकती।
शीला आंटी- तू भी उतार देना , अपनी ही नज़र
ज्यादा लगती है बच्चों को ।
( तभी नेहा आ जाती है। )
नेहा - किसको लग गई नज़र ?
नेहा की मम्मी - दादी अम्मा को बताओ पहले। ( इतने में ज्योति आवाज लगाती है, नेहा को । )
ज्योति - तेरा फोन आ रहा है।
नेहा - हाँ , आई । ( कहते हुए फोन लेने जाती है , और फोन पर नाम देख फोन ले वापिस आंटी और मम्मी के पास आ जाती है। )
लो , और करो याद , आ गया फोन। ( और फोन की स्क्रीन दिखाती है, मनीष की मम्मी का फोन था। )
नेहा की मम्मी - तो उठा तो ।
नेहा - बहुत लंबा खींचती है , ( मम्मी को फोन देते हुए। ) लो , आप करो बात।
नेहा की मम्मी- ( मना करते हुए ) ना- ना ना तेरे
फोन पर आया है तो तुझ से बात करनी
होगी।
नेहा - पर मुझ से क्या बात करेंगी?
शीला आंटी - वो तो फोन उठाने पर पता चलेगा ।
ला मुझे दे फोन। ( कहते हुए हाथ बढ़ा फोन लेने लगती हैं। )
( नेहा की मम्मी , शीला आंटी को रोकते हुए। )
नेहा की मम्मी- क्या ला दे मुझे फोन? ( नेहा से )
इसको नहीं देना फोन, उस दिन लहंगे पर
सुन ली थी तेरी बात । बस अभी का हो
गया । ( नेहा से ) तू उठा फोन , और ये
मत बोलना की घर पर है वरना वो मेरा
कान खा जाएगी।
नेहा - ये सही है ।
नेहा की मम्मी- सही गलत बाद में करना , फोन
कट जाएगा।
( नेहा फोन उठाने लगती है, पर इतने में फोन कट जाता है। )
नेहा - कट गया। ( इतना बोल, फोन रख ही रही
होती है कि दुबारा फोन आ जाता है। ) फिर से
आया ।
शीला आंटी- ज्यादा ही उतावली हो रही है तेरी
सांस... मतलब चौधरन अपनी बहू से
बात करने के लिए।
नेहा की मम्मी - ( नेहा से ) तू उठा , फिर कट
जाएगा।
नेहा - हाँ , उठा रही हूँ। ( कह फोन उठाती है , और स्पीकर ऑन कर देती है। )
नमस्ते आंटी जी ।
मनीष की मम्मी- आंटी जी नहीं, मम्मी जी
बोलने की आदत डाल ले।
( शीला आंटी और मम्मी हँसती हैं सुन कर। )
नेहा - हाँ जी।
मनीष की मम्मी - बड़े बिजी रहते हो तुम सब तो ,
मैंने सोचा मैं ही फोन कर लेती हूँ।
( नेहा , आंटी और मम्मी की तरफ देखती है। )
अभी तो हो गई होंगी क्लास ख़त्म।
नेहा- हाँ जी ।
मनीष की मम्मी - फिर घर पर हो ।
( नेहा मम्मी की तरफ देखती है , मम्मी ना का इशारा कर रही होती हैं। )
नेहा - नहीं आंटी जी ... मम्मी जी मैं पार्लर आई
हुई थी ।
मनीष की मम्मी - अच्छा है , अच्छा है ये दिन
कौन-सा बार-बार आते हैं। मैंने भी मीनू
के लिए पार्लर बुक कर दिया है। फ़ुरसत
तो उसके पास भी नहीं है । शनिवार को
तन्मय के पेपर खत्म होंगे , तो सगाई के
दिन ही सुबह- सुबह आएगी।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - और कैसी चल रही हैं तैयारी।
नेहा - सही चल रही है, सब लगे हुए हैं तैयारी में।
मैं तो रोज मम्मी को एक नई लिस्ट के
साथ देखती हूँ।
मनीष की मम्मी - हाँ , ये शादी ब्याह का काम
ऐसा ही होता है। कभी भी शुरू करो
खत्म नहीं होता । आखिरी वक़्त तक
चलता रहता है कुछ न कुछ ।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - हम भी कल वो अँगूठी
वगैरह..... अँगूठी तो तुम ने भी ले ली
होगी ।
नेहा - हाँ जी।
मनीष की मम्मी - आजकल तो मार्केट में इतने
डिजाइन हैं, दिमाग घूम जाता है डिजाइन
देख कर।
नेहा - हम्म ।
मनीष की मम्मी - पर डिजाइन आजकल का ही
देखना। और अँगूठी तो ऐसी होनी चाहिए
जो दूर से हो दिखाई दे ।
नेहा - मतलब !
मनीष की मम्मी - नहीं ऐसा कोई मतलब नहीं है
मेरा , बस वो शादी और सगाई बार - बार
नहीं होते इसलिए बढ़िया से बढ़िया चीजें
लेनी चाहिए जो यादगार रहे।
नेहा - पर आंटी जी , यादगार तो पल होते हैं
चीजें थोड़ी । ( नेहा की मम्मी उसे रोकने लगती हैं। )
मनीष की मम्मी - पर पल भी तो चीजों से ही
बनते हैं।
नेहा - मुझे लगा इंसानों से बनते हैं। और वैसे भी
मेरी मम्मी-पापा ने साई बँधी की अँगूठी
बनवाई है। अपना डिजाइन दे कर ।
आपको भी डिजाइन दूँ, आप भी वैसी ही
बनवा देना , मेचिंग - मेचिंग हो जाएगा ।
( शीला आंटी नेहा की पीठ थप थपाती हैं। )
मनीष की मम्मी - ना- ना हम तो बनवा चुके ।
नेहा - हम्म , वैसे भी बनवाने में महंगी भी पड़ती है। पर वही है मम्मी ने कहा ये शादी सगाई बार - बार थोड़ी होती हैं। जो करो एक दम बढ़िया करो ।
मनीष की मम्मी - हम्म । वो तो पता है मुझे तुम
लोगों काम तो बढ़िया ही है।
नेहा - हाँ जी ।
मैं आपसे बाद में बात करती हूँ, वो मैं
पार्लर में हूँ।
मनीष की मम्मी - हाँ - हाँ बेटा आराम से कर
लेना ।
नेहा - हाँ जी । नमस्ते आंटी जी .... मम्मी जी ।
मनीष की मम्मी - नमस्ते बेटा नमस्ते। मिलते हैं
फिर ।
नेहा - हाँ जी । ( कह फोन रख देती है। फोन
रखते ही नेहा की मम्मी कहती हैं । )
नेहा की मम्मी - ऐसे बात करेगी तू अपनी सांस
से ।
नेहा- ऐसा भी कौन -सा गाली दे दी । वही कह
रही थी बार - बार नहीं होता है, खास हो ,
दूर से दिखना चाहिए तो बस वही बोला है।
( नेहा की मम्मी कुछ बोलने वाली होती हैं, पर शीला आंटी पहले ही बोल पड़ती हैं। )
शीला आंटी - ( नेहा की मम्मी से ) लड़की को
मत डांट , ऐसा कौन - सा कुछ गलत कह
दिया नेहा ने । देख इतना भी सुनना सही
नहीं। कभी - कभी उन्हीं की बातों में
जवाब दे देना चाहिए। ये छोड़ तू अकेले
- अकेले अँगूठी पसंद कर आई । अरे
मेरा भी तो जमाई है, मेरा भी हक देखने
का बनता है।
नेहा की मम्मी - ( एक बार नेहा की तरफ देखती
हैं , फिर आंटी से कहती हैं। ) वो अचानक से बन
गया था जाने का प्लान ।
शीला आंटी- फिर भी , सगाई एक बार होती है ।
अँगूठी भी एक बार बनती है। एक ही बार ....
नेहा की मम्मी- हाँ, तो एक बार तू भी देख आ ।
( नेहा से ) तू ले जाना आंटी को , एक बार उस
एक अँगूठी को देख लेंगी। ( सब थोड़ा हँसते हैं। फिर नेहा की मम्मी नेहा से कहती हैं )
पर ये मत सोचना तेरा वो बात करना
मुझे अच्छा लगा।
नेहा - हम्म।
( नेहा की मम्मी और शीला आंटी अँगूठी की बात करने लगते हैं ।)
continued to next part......
© nehaa