इक कहानी अपनी सी...
एक कहानी अपनी सी...
शायद सब जैसी...
पर निजी इतनी की पड़ जाएं
सामने तो अनजानी सी...
यूं बहुत ही समान्य चल रहा था जीवन..ना कोई उथल पुथल थी ना कोई कमी.. सब कुछ तो था प्यार प्रेम लगाव और वो सब कुछ जो जो होना चाहिए.. पत्नी भी उसकी सुंदर ही थी..
तो कमी किस चीज़ की थी.. जो उलझ गया वो उन संबंधों में.. घंटो बातें हुई उससे कहीं कोई कमी दिखाई ही ना दे रही थी.. शरीफ़ बंदा था.....
शायद सब जैसी...
पर निजी इतनी की पड़ जाएं
सामने तो अनजानी सी...
यूं बहुत ही समान्य चल रहा था जीवन..ना कोई उथल पुथल थी ना कोई कमी.. सब कुछ तो था प्यार प्रेम लगाव और वो सब कुछ जो जो होना चाहिए.. पत्नी भी उसकी सुंदर ही थी..
तो कमी किस चीज़ की थी.. जो उलझ गया वो उन संबंधों में.. घंटो बातें हुई उससे कहीं कोई कमी दिखाई ही ना दे रही थी.. शरीफ़ बंदा था.....