...

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कैसा लगता है....
कैसा लगता है जब
कोई तोड़ जाता है तुम्हारे मान को
स्वाभिमान को..
जब आहत हो जाती है भावनाएं
वयक्त ना हो पाते हैं
जज़्बात...
होता बहुत कुछ है कहने को
शब्द भी होते हैं
फिर भी
रुक जाता है इन्सान...
धारण कर लेता है मौन..
क्यों की
उसको जबरन बांध दिया जाता है
जाल में.. असंख्य शब्दों में पिरोए हुईं उसकी भावनाएं को
गिरवी रख चुप करा दिया जाता है उसे...
घर हो बाहर हो दफ्तर हो ससुराल हो या हो समाज..
नियमों में बंध ही जिंदा रहता है इंसान...
शायद थोड़ा हो उदास थोड़ा हो खुश...
© दी कु पा