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ज़ख्मों के निशान
घर पर बहुत चहल पहल थी,मेरी शादी जो थी,माँ बाबा
का उत्साह देखते ही बनता था। मैं माया-शादी मेरी रज़ामंदी से तय हुई थी पर अतीत के चंद ज़ख्मों के निशानों से उबर नहीं पाई थी मैं, मैंने जिसे चाहा था वो फरेबी निकला।मैं शादी से पहले रवि को सब बता चुकी थी,वे अच्छे इंसान जान पड़ते थे, शादी के बाद भी उन्होंने मेरे कहने से एक दूरी बनाये रखी, जब तक रिश्ता सामान्य न हो जाये,एक सुबह वो मेरे उठने से पहले ही दफ़्तर जा चुके थे, कुछ देर में अस्पताल से फ़ोन आया कि उनका एक्सीडेंट हो गया है, मैं अफ़रातफ़री में भागी,पहुँचते ही पता चला वो नहीं रहे,मानो मुझ पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो मैं बेतहाशा रो रही थी,तभी रिसेप्शन से मुझे बुलाया बॉडी देने के लिए चेहरे से चादर उठायी तो मैं हैरान थी ये मेरे पति रवि नहीं थे,कोई ग़लतफ़हमी हुई थी,मैं ख़ुद को संभालते हुए उनके दफ़्तर जा पहुंची, मुझे इस हाल में देख उन्होनें मुझे गले लगा लिया बोले क्या हुआ माया सब ठीक तो है, मुझे फ़ोन कर देतीं, मैं आ जाता मैं कुछ बोल नहीं पाई उन्हें सही सलामत देख मैं मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कर रही थी ,इस हादसे ने मानो मेरे सारे ज़ख़्म भर दिए थे, ये मेरे सुखी जीवन की पहली शुरुआत थी!!!