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एहसास अपनेपन का - Part 1
एहसास अपनेपन का - Part 1

जिंदगी की भाग दौड़ में चलते चलते
रोज़ जिंदगी आपकी याद दिला रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी के फलसफो परखते परखते
रोज़ जिंदगी मुझे सिखा रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की तलाश में खुद को खोते खोते
रोज़ जिंदगी मुझे रुला रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की उधेड़ बुन में खुदको बुनते बुनते
रोज़ जिंदगी मुझे बढ़ा रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की उलझनों को सुलझाते सुलझाते
रोज़ जिंदगी मुझे उलझा रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की डोर को थामते थामते
रोज़ जिंदगी मुझे कटी पतंग सा बना रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की चौखट को लांघते लांघते
रोज़ जिंदगी मुझे खुदमे धकेले जा रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?

जिंदगी की लिखावट को पढ़ते पढ़ते
रोज़ जिंदगी मुझे आपके करीब ला रही है
पापा मैं बड़ी हो गई क्यूं ?
© firkiwali