...

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पुरानी मोहब्बत
मुझे इस नए दौर में मोहब्बत पुरानी वाली चाहिए।
चाहती हूँ कि तुम और मैं किसी शाम सितारों के नीचे चाँद के साथ-साथ चलें हाथों में हाथ डाले दूर कहीं बस चलते जाएं। कभी पूर्णिमा की रात में छत पर ख़ामोशी से बैठ..धीमी आवाज़ में गाना सुने..
"लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो..
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो"
(क्योंकि मुझे यह गाना अत्यन्त ही प्रिय है।)
हमारा आशियाना, बेहद ख़ूबसूरत फूलों से भरी किसी बगिया के बीच हो और पास ही हमने बनाया हो प्यारा सा मंदिर। जिसमें एक ओर भोलेनाथ और माँ पार्वती हों और दूसरी ओर श्रीराम और माता जानकी।
सुबह-सुबह आँगन में गुलाब, मोंगरा जैसे सुगंधित फूल खिलें और रेडियो पर ये पुराने गाने चल रहे हों..
"हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते,
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना"
या, "अभी ना जाओ छोड़कर, की दिल अभी भरा नहीं"
कभी तुम जब काम पर जाओ तो मैं तुम्हें ज़ल्दी आने का कहने के लिए आवाज़ ना दूँ, बल्कि तुम्हारे खाने के डिब्बे में एक पर्ची रख दूँ.. जिस पर लिखा हो 'घर ज़ल्दी आना'।
कभी तुम किसी सर्द रात में अंगीठी की आगे कोई ख़ूबसूरत कविता सुनाओ तो कभी टूटी-फूटी ही सही मगर शायरी या शेर कहो मुझ पर..।
कभी मैं तुम्हें तोहफ़े में मेरी पसंदीदा प्रेम कहानी की किताब भेंट करूं तो तुम मुस्कुराकर उसे सहर्ष स्वीकार करो।
ये बताने के लिए की तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो, तुम मेरे लिए ख़त लिखा करो।
कभी तुम्हें बुलाने के लिए जब मैं पायल छनकाऊं या चूड़ी खनकाऊं, तो तुम बिना किसी सवाल करे मुझसे आकर पूछो.. बुलाया तुमने?? और मैं मुस्कुराकर ना कह दूं..।
कभी बारिश में हम भीगते हुए गाना गाएं..
"रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन..
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन"
(चलो बेसुरा ही सही..)
हाँ! जानती हूँ तुम्हें यह सब बड़ा ही बचकाना लगेगा..
मगर मुझे ऐसी ही मोहब्बत से मोहब्बत है।
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