रात की परछाईयाँ....
रात की परछाइयाँ
ठीक रात के 12.10 पर बस मुझे स्टॉप पर उतार कर आगे बढ़ गई । बस स्टैंड पर सन्नाटा पसरा हुआ था , सड़क यूँ सुनसान पड़ी थी जैसे किसी वीरान जंगल में कोई पगडण्डी गुज़र रही हो । जहाँ मैं आया था वह एक छोटा सा कस्बा है , यहाँ मैं अपने दोस्त की बहन की शादी में शरीक होने आया हूँ । मेरे मोबाइल की बैटरी ख़त्म होने के कारण वो स्विच ऑफ़ हो गया है , इसलिए मुझे बहुत कोफ़्त हो रही थी , यूँ लग रहा था जैसे मैं इस दुनिया से ही कट गया हूँ ।
परन्तु इसमें इस निरीह मोबाइल की कोई गलती नहीं थी , मैं ही इस पर व्हाट्स अप और फ़ेसबुक चलाता रहा , पता होते हुए भी कि यह कभी भी स्विच ऑफ़ हो सकता है , ठीक उसी तरह जैसे किसी परिवार के मुखिया के बार बार संकेत पर भी कि वह कभी भी उनका साथ छोड़ सकता है , पर परिवार वाले उसको नज़र अंदाज़ कर उसकी अंतिम साँस तक उससे काम लेते रहते हैं ।
मैंने भी वही किया ....बार बार बैटरी लो के संकेत के बावजूद भी मैंने ध्यान नहीं दिया । ख़ैर यह अच्छा रहा कि मैंने मोबाइल के स्विच ऑफ़ होने से पहले ही मित्र को फ़ोन कर के बता दिया था कि मैं लगभग 12.30 तक उसके कस्बे में पहुँच जाऊँगा ।
फ़िलहाल मैं उस सुनसान सड़क पर नितान्त अकेला खड़ा था । मेरे पास सामान के नाम पर एकमात्र बैग था जिसे मैंने वहीं एक रेहड़ी पर , जो कि शायद दिन में किसी चाय की थड़ी रहती होगी , रख दिया और इधर उधर नजर दौड़ाई । मुझे स्ट्रीट लाइट की रौशनी में अपनी परछाइयाँ दिखाई दीं । दिन में एक परछाईं दिखने वाली अब चार के रूप में नजर आ रही थीं ।
मेरा ध्यान अनायास ही मेरी परछाईं पर केन्द्रित हो गया ।यह मेरी परछाईं कितनी पिछलग्गू है .... आलसी इतनी कि मेरे बैठने से पहले बैठ जाती है और मेरे उठने के बाद ही उठती है और मतलबी इतनी कि जैसे ही किसी छांह के नीचे आती है झट से पीछा छोड़ जाती है । पर एक बात है जब...
ठीक रात के 12.10 पर बस मुझे स्टॉप पर उतार कर आगे बढ़ गई । बस स्टैंड पर सन्नाटा पसरा हुआ था , सड़क यूँ सुनसान पड़ी थी जैसे किसी वीरान जंगल में कोई पगडण्डी गुज़र रही हो । जहाँ मैं आया था वह एक छोटा सा कस्बा है , यहाँ मैं अपने दोस्त की बहन की शादी में शरीक होने आया हूँ । मेरे मोबाइल की बैटरी ख़त्म होने के कारण वो स्विच ऑफ़ हो गया है , इसलिए मुझे बहुत कोफ़्त हो रही थी , यूँ लग रहा था जैसे मैं इस दुनिया से ही कट गया हूँ ।
परन्तु इसमें इस निरीह मोबाइल की कोई गलती नहीं थी , मैं ही इस पर व्हाट्स अप और फ़ेसबुक चलाता रहा , पता होते हुए भी कि यह कभी भी स्विच ऑफ़ हो सकता है , ठीक उसी तरह जैसे किसी परिवार के मुखिया के बार बार संकेत पर भी कि वह कभी भी उनका साथ छोड़ सकता है , पर परिवार वाले उसको नज़र अंदाज़ कर उसकी अंतिम साँस तक उससे काम लेते रहते हैं ।
मैंने भी वही किया ....बार बार बैटरी लो के संकेत के बावजूद भी मैंने ध्यान नहीं दिया । ख़ैर यह अच्छा रहा कि मैंने मोबाइल के स्विच ऑफ़ होने से पहले ही मित्र को फ़ोन कर के बता दिया था कि मैं लगभग 12.30 तक उसके कस्बे में पहुँच जाऊँगा ।
फ़िलहाल मैं उस सुनसान सड़क पर नितान्त अकेला खड़ा था । मेरे पास सामान के नाम पर एकमात्र बैग था जिसे मैंने वहीं एक रेहड़ी पर , जो कि शायद दिन में किसी चाय की थड़ी रहती होगी , रख दिया और इधर उधर नजर दौड़ाई । मुझे स्ट्रीट लाइट की रौशनी में अपनी परछाइयाँ दिखाई दीं । दिन में एक परछाईं दिखने वाली अब चार के रूप में नजर आ रही थीं ।
मेरा ध्यान अनायास ही मेरी परछाईं पर केन्द्रित हो गया ।यह मेरी परछाईं कितनी पिछलग्गू है .... आलसी इतनी कि मेरे बैठने से पहले बैठ जाती है और मेरे उठने के बाद ही उठती है और मतलबी इतनी कि जैसे ही किसी छांह के नीचे आती है झट से पीछा छोड़ जाती है । पर एक बात है जब...