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आत्मनिर्भर भारत
ग़ुलाम- एक शब्द जिसको हर इंसान नफरत करता है;
आज़ाद हो कर अपनी ज़िन्दगी को जीना चाहता है;
एक नई उम्मीद के साथ नए रास्ते पे चलकर;
अपने ज़िन्दगी के सपनों को पूरा करना चाहता है;
हर कोई तो ऐसी ही ज़िन्दगी जीना चाहता है;
पर कितनो के नसीब में ऐसा होता है।

सन 1947 जब हर भारतवासी का सपना पूरा हुआ;
अंग्रेज़ो की गुलामी को छोड़, देश आज़ाद हुआ;
चारों ओर खुशी का माहौल छा गया;
अंग्रेज़ो का झंडा उतार, अपना तिरंगा लेहरा दिया;
पर क्या झंडा बदलने से आज़ादी आती है?
यह सवाल आज भी मेरा दिल पूछा करती है;

मै कहता हूं हम आज भी आज़ाद नहीं;
बस अंग्रेज़ चले गए पर गुलामी नहीं;
झंडा बदलने से आज़ादी नहीं मिलती है;
सरकार बदलने पे गुलामी नहीं जाती है;
तब अंग्रेज़ो के थे,अब अमीरों के है;
ग़रीबी तब भी थी और आज भी है;

मै पुछता हुं हमारा देश मे गरिबी क्यों है;
हर चीज़ है पर फिर भी कमी क्यों है;
क्यों आज भी हर चीज के लिए दूसरे मुल्कों पर निर्भर होना पड़ता है;
क्या यही आज़ादी है जो आज भी दूसरे मुल्कों की गुलामी करने पे मजबूर करता है;
वो दिन कब आएगा जब भारत गुलामी नहीं, गुलाम बनाएगा;
निर्भरता के रास्ते से हटकर आत्मनिर्भर बन पाएगा;
जब हमारे गाँव में बैलगाड़ियां नहीं, मेहंगी गाड़ियां चलेंगे;
कोई अमीर या गरीब नहीं, सब एक बराबर जिएंगे;
वह वो दिन होगा जब भारत आज़ाद होगा;
हर गुलामी को छोर, एक नए भारत का निर्माण करेगा;
लड़ाई जारी है, मंज़िल दूर नहीं;
रास्ता कठिन है पर नामुमकिन नहीं!!!


© anirban