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ज़िंदगी की जंग
हमने अक्सर प्रेमी जोड़े को ये कहते हुए सुना है कि अगर आपको कुछ हो गया तो मैं भी नहीं जी पाऊंगी, जीते जी मर जाऊंगी। ये सब सुनने में काफ़ी दुखदाई और दर्दनाक लगता है, इसमें जोड़े का एक दूसरे के प्रति अनंत प्रेम झलकता है,पर सच्चाई तो ये है कि किसी के चले जाने से ज़िंदगी नहीं रुकती, हां खालीपन ज़रूर लगता है जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। हमें उस शख़्स की पल पल याद सताती रहती है पर हम बेबस आंसू बहाने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं। मेरे सामने का ही एक हादसा मैं यहां आप सब से साझा करना चाहती हूं,मेरी एक दोस्त थी जिनकी विवाहिता ज़िंदगी अच्छे से परिवार के साथ कट रही थी। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। विवाह को भी तकरीबन दस साल हो गए थे। दोनों अच्छी नौकरी में थे और ख़ुशी ख़ुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे कि अचानक दोस्त के पति की सेहत एक दिन ख़राब हो गई। तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया, शिकायत थी मामूली बुखार और खांसी की। डाक्टर ने भी जांच पड़ताल के बाद उनको दवा दे कर लौटा दिया। कुछ दिन सब ठीक रहा। फिर से एक बार उनको यही शिकायत हुई, और ऐसे ही महीने भर इलाज करवाने के बाद भी जब वे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुए तो डाक्टर ने संदेह जताते हुए उन्हें कुछ टेस्ट करवाने को कहा। और जब टेस्ट की रिपोर्ट आई तो डाक्टर और मेरी दोस्त के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उनके पति को ब्लड कैंसर डायग्नोस किया गया। कहते हुए भी मेरी आंखें भर आ रही है,पर यहां मैं एक बात कहना चाहूंगी कि मेरी दोस्त बहुत बहादुर है, आमतौर पर जब हमें पता चले कि हमारे किसी करीबी को ऐसी कोई जानलेवा बीमारी है तो हम अपने आंसू रोक नहीं पाते हैं,पर न जाने ऊपरवाले ने मेरी दोस्त को कैसे इतना मज़बूत बनाया कि वो ख़ुद को संभालते हुए पति के पास गयी और उन्हें भी समझाते हुए कहा कि आज कल इस बीमारी का भी इलाज संभव है,तो घबराने वाली कोई बात नहीं। पर अंदर ही अंदर वो टूट चुकी थी ये जानने के बाद। फिर क्या था, लगातार पांच साल एड़ी चोटी का ज़ोर लगा कर इलाज करवाया अपने पति का,कयी केमोथेरेपी सेशन और हाई डोज की दवाईयां। यहां तक की इलाज करवाने हेतु दूसरे शहर में बस गयी महीनों के लिए, अपने छोटे बच्चे से दूर,पर उनके जज़्बे को मैं सलाम करती हूं, इतना सब कुछ करना और वो भी अकेले कोई मज़ाक नहीं है। सच बताऊं गर उसकी जगह मैं होती तो कब का बिखर चुकी होती। पर उसने अपने पति की खूब सेवा की, लेकिन वो कहते हैं ना कि विधी का विधान। होनी को कौन टाल सकता था, धीरे धीरे उन पर दवाईयों का भी असर नहीं होने लगा,खाना पीना सब छूटने लगा,शरीर भी निढाल हो गया। और फिर वो काला दिन आया जिस दिन उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ और सभी अंगो ने एक साथ काम करना बंद कर दिया। उन्हें आई सी यू में दाखिल किया गया, डाक्टरों को पता चल गया कि अब ये उनका आखिरी समय था। उन्होंने मेरे दोस्त को बुलाया और समझाया कि हमसे जितना हुआ, हमने किया,अब तो कोई चमत्कार ही इन्हें बचा सकता है। मेरी दोस्त की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। बेचारी कुछ कह और कर भी नहीं पा रही थी।😭😭😭😭😭😭😭 उसकी आंखों के सामने उसके पति ने धीरे धीरे अपना दम तोड़ दिया। और वो कुछ नहीं कर पाई। ज़िंदगी से जंग हार गया उसका पति।
सच में मुझे तो कहते हुए भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं कि कैसे उसने ये सब अनुभव किया होगा और वो भी इतनी कम उम्र में। जिस पर बीतती है वही जानता है।
हम सब अपने कर्मों का लेखा जोखा ऊपर से लिखवा कर लाते हैं,बस कठपुतली बन समय पूरा हो जाने तक अपना किरदार निभाते हैं।

© Aphrodite