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परवरिश....
आज अकेले में बैठ कर, कुछ बीते लम्हों और अपनी उस समय की नादान सोच पर, सोचने के बाद, होठों पर एक हल्की सी मुस्कान, आँख में थोड़ी सी नमी के साथ खुद में खुद पर विश्वास की एक असीम अनुभूति, उसे उसके संपूर्ण होने का यकीन बड़ी मजबूती से करा रही थी l
शून्य में ताकती निगाहों के सामने वो समय कितना साफ दिखाई दे रहा था l और वो था, उसका बचपन, l सबका बचपन सुंदर होता है l पर भरपूर जीने के बाद भी हर समय एक अंकुश और कुछ जोड़ी निगाहें उसकी हर गतिविधि पर जैसे एक नियंत्रण रखती थी l तितली सी उड़ती थी पर सीमित दायरे में, खिलखिलाती थी, मगर संयम में, बोलती थी किंतु भाषा और शब्दों की गरिमा के साथ l कुछ ऐसी ही परवरिश थी उसकी l
जबसे समझ आई, तबसे उसने एक ही बात समझी कि किसी का डर ना होकर भी एक डर खुद का खुद में किस प्रकार रखा जाता है l जीवन में हर छोटी से छोटी बात का कितना महत्व होता है l
सच कहे, तो उस समय का वो अंकुश बहुत दुखदायी होता था, लगता था, सारा परिवार ही दुश्मन है लेकिन उसकी हर सफलता पर आई उनके चेहरे की मुस्कान और आँखों में गर्व की चमक उसे कोई भी पृश्न करने से सदा रोक देती थी l
समय के साथ जीवन की चुनौतियों ने अपना अस्तित्व दिखाना शुरू किया l तब निडर हो कर उनका सामना करना और उनसे जीतने पर उसे अपनी मजबूत नींव का स्पष्ट भान हुआ l
हम सभी अपनी संतान पर प्रेम की वर्षा करते है, उनकी हर खुशी और ख्वाहिश को पूरा करने के लिए भरसक प्रयास भी करते है l अक्सर अपने बचपन की हर कमी को उनसे दूर रखते है, परंतु एक याद रखने वाली बात को अनदेखा करते है, और वो है माता पिता का आपकी हर गतिविधि पर नियंत्रण l
आज की पीढी में संस्कारों के अभाव के जिम्मेदार अभिभावक सबसे ज्यादा है l मोहवश वो इस बात का महत्व ही भूल जाते है कि नियंत्रित देखरेख में उनकी संतान की परवरिश बेहतर होगी l
किसी से भी जब आप बात करे या उनकी गतिविधियों पर ध्यान दे तो आपको उनके अंदर उनके माता पिता और उनके दिये संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे l
तो ये आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी कैसी छवि अपनी संतान को विरासत में दे रहे है l
विषय विस्तृत है, शेष फिर कभी....
त्रुटि के लिए क्षमा 🙏.....


© * नैna *