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संडे संवाद हानिया के साथ PART 3
जिस संडे के इंतजार में पूरा हफ्ता रहते हैं... लो आ ही गया वह संडे। संडे संवाद करती हूँ अपनी लेखनी के माध्यम से। पता नहीं क्यों दिल को सुकून मिलता है। अब जब सुकून का पिटारा खुल ही गया है तो यह भी बता दूं कि आज उठने के साथ ही मन कुछ बेसुकूनी में था... शायद शारीरिक थकान, थोड़ी बहुत खांसी-जुकाम बदनदर्द की शिकायत इस बेसुकूनी की वजह थे। मन मस्तिष्क मानो जाम से महसूस हो रहे थे। टैरो रीडर हूं तो टैरो ले कर बैठी अपने लिए आज की गाइडेंस पूछने जो कि मैं हर रोज़ करती हूं। कार्ड आया 'सोर्स' कार्ड। फिर क्या था, आँखों से अचानक कुछ आंसू बह निकले... वह पल आत्मा की पुकार था जो अंदर से मुझे झंझोड़ रहा था कि जो खुद के रचयिता से जुड़ा नहीं उसका जीवन कमजोर और व्यर्थ है। मुझे मेरे टैरो कार्ड ने चेताया कि मैं उस परम आत्मा से जुड़ना भूल गई हूँ। वह परम आत्मा जो सुमेर पर्वत सी मजबूत है... उसकी ओट लेनी चाहिए मुझे... क्योंकि वह परम शक्ति ना खुद डोलती है ना मुझे डोलने देगी और हर वक़्त मुझे शक्ति देगी। फिर क्या था, मेरी सोच को मेरे जीवन को नई दिशा मिली है आज। अब मुझे पता है कि मुझे किस दिशा में काम करना है... बेसुकूनी से असीम सुख की तरफ़ रास्ता दिखाया मुझे मेरे टैरो कार्ड ने। बहुत शुक्रिया मेरे परम आत्मा... आज के संडे ने मन को नई उम्मीद से भर दिया।
© Haniya kaur