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रिश्तों में बदलाव की बयार
रिश्तो में बदलाव की बयार
कल तक जो था हंसता खेलता परिवार "
आज वीरान हो चला वो घर आंगन और संसार"
कहते हैं पुत्र कुपुत्र भले हो जाएं पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती..!! पर बदलते समाज में माता के कुछ ऐसे व्यवहार भी सामने आए हैं जिन्हें हम नजर अंदाज नहीं कर सकते...!!
दीपक घर का सबसे छोटा बच्चा और अपनी मां का लाडला"भाभियों के आ जाने से मां और बेटे के बीच
अक्सर अनबन का माहौल बना रहता।
दीपक चाहे कुछ भी कर ले मां को एक नजर भी नहीं भाता । बात बात पर मां कहने लगी अगर मेरे पास एक ही संतान रहता तो अच्छा था। पता नहीं भाभियों ने मां के मन में कौन सी ईर्ष्या की बीज बो थी कि वह अपने लाडले बेटे की बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थी ।बीते वक्त में जिस बेटे के लिए मां अपनी जान तक देने को तैयार थी आज उसी बेटे को देखना तक नहीं चाहती है।
दरअसल दीपक बहुत ही होशियार और काबिल बच्चा था। अपनी मेहनत और लगन की बदौलत उसने वह मुकाम हासिल किया जो उसके भाई कभी सोच भी नहीं सकते, उसकी यही कामयाबी उसकी भाभियों के आंखों में कांटे की तरह चुभने लगी। और उसने अपनी सासू मां पर इतने तीखे शब्दों का प्रहार किया कि वो भी सुन सुन कर धीरे-धीरे उन्हीं की भाषा बोलने लगी। अब उन्हें लगता है कि उन्होंने अपने दूसरे बेटों के साथ अन्याय किया है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है उन्होंने दीपक से ज्यादा अपने दूसरे बेटों की पढ़ाई लिखाई में खर्च किया है। और परवरिश भी उनकी बहुत अच्छी की है मग़र वो लोग गलत संगत में पड़कर गलत रास्ते पर चलने लगे। भाभियों का कहना था कि उनके पतियों को उन्होंने अपने साथ नहीं रखा इसलिए वह ऐसे हो गए बिगड़ गए और गलत रास्ते अपना लिए।जबकि उन्होंने दीपक को अपने साथ रखा मग़र ऐसा नहीं था दीपक के भाई थोड़े ही दिनों के लिए अपने नाना नानी के पास थे क्योंकि उस समय दीपक की मां की तबीयत बहुत खराब थी। और दीपक बहुत छोटा था और मां का दूध भी पीता था।जिस वजह से उसे मां से दूर रखना संभव न हुआ। मां और बेटे के बीच बढ़ती हुई इस दूरी से तो भाभियों को बहुत फायदा हुआ। मगर दीपक अंदर ही अंदर घुटने लगा वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इस दूरी को कम कैसे किया जाए..??वह अपनी मां से दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता था।
मगर मां की जली कटी बातें बात-बात पे ताना देना उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था।वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मां को कैसे समझाएं....?? कि वह उससे अलग नहीं है उसके हमेशा साथ है। बस थोड़े से समझ कि फेर है। भाभियों ने इतना जहर भर दिया है दीपक के खिलाफ उसकी मां के मन में कि अब तो इस खाई को भर पाना लगभग नामुमकिन सा लगता है। मगर फिर भी दीपक प्रयत्नशील है। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है अपनी मां के मन से अपने प्रति ईर्ष्या और दुर्व्यवहार को मिटाने का। वह इस कोशिश में लगा है कि आखिर कभी तो मां उसके व्यवहार को देखकर बदलेगी और उसे फिर से गले लगाकर वही पहले सा निश्छल स्नेह
देंगी..!!
किरण