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आन्तरिक आपातकाल...
तीन दिन हो गए थे ... प्रीत और सना को मोबाइल का स्क्रीन न साझा करते हुए .... प्रीत पिछले कई दिनों में हजार दफ़ा सना को अस्वीकरण स्वरूप चेता चुका था ,ज्यादा लगाव अच्छा नहीं है । सना ने भी हां में सिर हिला दिया था वह भी खुद बीते अतीत से इतना तो समझ गई थी यह मुई किसी की आदत जान ले लेती है ...नासमझ सना जब तैरना नहीं आता तो कूदती ही क्यों हो? सामने वाला गलत कहां होता है गलत होती हो तो तुम और तुम्हारी पाक सी भावना। दो दिनों से बातों की उथल-पुथल ने आज तीसरे दिन पूर्ण विराम लिख दिया था बस शरीर दर्द के मारे कराह रहा है ...लैम्प के नीचे खुली लक्ष्मीकांत में आपातकालीन प्रावधान पढ़ते ध्यान आया जैसे किसी ने दिल में आंतरिक आपातकाल लगा दिया हो जिसकी समय सीमा अनिश्चित काल तय कर दी गई हो...क्यूँ सना इस धूधले दर्पण में तुम हो या प्रीत???
© श्वेता_साहिबा