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दीवाली - एक सबक...🪔🪔✍️✍️
जैसा कि दिवाली हम सब मनाते हैं
सदियों से चली आ रही परंपरा को
हम चलाते आ रहे हैं, ये बहुत अच्छा है
पर क्या सिर्फ पटाखे और फुलझडियां
चलाकर हम इस पवित्र त्यौहार को
जाने दें या इससे कुछ सीख भी लें
जो हमारा जीवन ही बदल दे ।
दीवाली का सही मायने में अर्थ ये है कि
जैसे दीपक खुद जलकर दूसरों को
रोशनी देता है वैसे ही हम भी सिर्फ
अपना भला न सोच कर दूसरों के
बारे में भी सोचें।
दूसरों को अंधेरों से बाहर निकालें।
पर लोग तो आजकल इसके
विपरीत चल रहे हैं।
नफरत की आंधियों ने आज मोहब्बत
के सारे दीपकों को बुझा दिया है।
जिनके दिल का दीपक बुझा पड़ा है
वो क्या दीवाली बनायेंगे???
बस सब लोग आज खोखली
दीवाली मना रहे हैं।
भाई-भाई से नाराज है
दोनों एक-दूसरे की शक्ल देखना
नहीं चाहते।
परिवार की दीवाली बनती है
अपनों से।
जब अपने ही अपने से दूर हों तो
तो ये घरों में जलते दीपक
भी किसी खंडहर से कम नहीं।
लोगों ने पैसा कमाने के चक्कर में
अपनों को छोड़ दिया।
बेटे अपने मां बाप से दूर होकर
विदेश चले गए।
आज का मानव मोह माया में
फंसता ही जा रहा है।
मां घर में इन्तजार करती रहती है
कि मेरा बेटा अब आयेगा अब आयेगा??
पर बेटे को तो घर आने
की भी फुर्सत नहीं है।
आप अपने घर में त्योहारों पर आ जायें
इससे अच्छा उपहार मां बाप के लिए
कुछ भी नहीं।
और अन्त में यही कहना चाहूंगा कि
🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔
मत दिल दुखा किसी का सबर कर ले
प्यार दौलत से नहीं मिलता कदर कर ले
जिंदगी चार दिन की है यूंही गुजर जायेगी
अपने चाहने वालों की तरफ नजर कर ले
🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

🙏राधे राधे 🙏




© Shaayar Satya