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होनहार लोग
*होनहार लोग*
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*होनहार लोग*
कभी बेरोजगार नहीं होते,
पा ही लेते हैं वह मुकाम जो
रोजगार से
कहीं ज्यादा बेहतर था...
पर वह सफर भी
आसान नहीं होता...
कभी-कभी
आकर बातों में जमाने की,
समझ लेते हैं खुद को कमतर
हो जाते हैं गुस्सैल और चिड़चिड़े
जो कभी
हँसमुख, मिलनसार और
सहृदयी हुआ करते थे...
कोसने लगते हैं
अपने अस्तित्व को,
जैसे ढो रहे हो
अपने जीवन को
अपने ही शरीर में,
निराशाओं के
अंधे और गहरे कुएँ में
गिरने के बाद भी,
पुन: दोहरे उत्साह से
एक ही छलांग में
पार कर लेते हैं
तमाम कठिनाईयाँ...
जो उन रोजगारी लोगों के
बस की बात नहीं थी
स्वप्न में भी...
और जुट जाते हैं
ईश्वर की दी अपनी हर श्वास का
कर्ज उतारने में,
आने वाली पीढ़ियों को
प्रेरणा और एक नई सौगात देकर...
*होनहार* लोगों के लिए
नहीं होती
बेरोज़गारी अभिशाप,
क्या रोजगार में
यह सब संभव था...?
यज्ञ समिधा की तरह
जलकर मिटकर भी,
पर्यावरण को स्वच्छ बनाना
और खाक होकर भी
राख नहीं
विभूती का दर्जा
प्राप्त कर लेना...?
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अभिव्यक्ति -सोनाली तिवारी "दीपशिखा"
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