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अनजानी रात ३
जैसे ही करण ने आंखें खोली, उसने अपने आप को एक बंद कमरे में एक कुर्सी पर रस्सी से बंधा हुआ पाया। उसके मुंह पर पट्टी बंधी हुई थी। वह बहुत बेबस और लाचार था। लेकिन जैसे ही उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, तभी उस कमरे का दरवाजा खुला और एक आदमी उस दरवाज़े से अंदर आते दिखा। उसने करण के मुंह से पट्टी हटाई।

कौन हो तुम? क्या चाहते हो? आखिर मेरी तुम से क्या दुश्मनी? यहां क्यों लाए हो? करण के सवाल टूट पड़े।
श्श्श…चुप एकदम! तुम्हारी दुश्मनी मुझसे नहीं मेरे बॉस से है! वह लाए हैं तुझे यहां! उस आदमी ने गुर्राते हुए कहा।
कौन है तुम्हारा यह बॉस? मेरी उस से क्या दुश्मनी? मैंने उसका क्या बिगाड़ा? करण ने डरते हुए पूछा।
बकवास मत कर! जाना चाहता है कौन है बॉस हमारा? राज! आदमी ने कहा।
तभी एक चमचा बोल पड़ता है : भाई बॉस का फोन है।
ऐ! मुंह बंद करो इसका! मैं बॉस से बात करता हूं! आदमी ने चमचे को कहा।
हैलो! हां बॉस! बोलो! आदमी ने बॉस से कहा।
क्या उसे यकीन हो गया कि इन सब के पीछे राज है?? बॉस ने पूछा।
हां बॉस! अब तक तो उससे नफरत भी हो गई होगी उसे! आदमी ने हंसते हुए कहा।
छोड़ दो उसे अब! उसे लगना चाहिए कि राज ने उसके मन में डर फैलाने की कोशिश की है! छोड़ दो उसे! हा-हा-हा! बॉस में हंसते हुए आदमी से कहा।
आदमी (बॉस से) : ठीक है बॉस!
आदमी (चमचे से) : ऐ! छोड़ दो इसे! बॉस ने कहा है कि इसको वह बस इतना बताना चाहते हैं कि वह क्या है? क्या क्या कर सकते हैं? छोड़ दो इसे अब।

करण गुंडों से तो छूट गया लेकिन सवालों ने अभी भी उसे जकड़ रखा था कि आखिर क्यों राज ऐसा कर रहा है? अगर ऐसा था तो उसने उसे क्यों बचाया?

करण सोचता है : 1 मिनट! अब मुझे समझ आ रहा है कि कैसे राज जंगल में पहुंचा? क्योंकि उन सब के पीछे भी वहीं था! सब कहानी झूठी थी! मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था! अब मुझे घर ही जाना चाहिए! छोडूंगा नहीं मैं राज को!

करण घर पहुंचता है। वह बहुत परेशान था। रात के 10:00 बज चुके थे कि तभी घंटी बजती है। करण ने दरवाजा खोला और सामने राज खड़ा था। करण ने राज का कॉलर पकड़ लिया।

क्या दुश्मनी है मुझसे? क्यों मारना चाहता था मुझे? क्या दिखाना चाहता था? कितनी पहुंच है तेरी? करण आग बबूला हो चुका है।
अरे! क्या हुआ भाई? मैं भला क्यों मारना चाहूंगा तुझे? राज हैरान था।
झूठ मत बोल! निकल यहां से! करण ने गरजते हुए कहा।

राज उदास चेहरा लिए वहां से अपने घर चला जाता है कि तभी राहुल करण के घर पहुंच जाता है।

हाय करण! व्हाट्स अप! राहुल बहुत उत्साहित था।
बस ठीक हूं! तू यहां कैसे? कुछ काम था क्या?
अरे हां! तू यहां तस्करी का सामान लाया था ना! वह मुझे दे दे ताकि मैं उसे सुरक्षित पुलिस तक पहुंचा दूं। राहुल ने कहा।
लेकिन…करण थोड़ा परेशान था।
अरे चिंता किस बात की! अरे भूल गया मेरे चाचा एक अफ़सर हैं उन्हीं तक तो पहुंचाना है ये सामान! तू ज्यादा क्यों सोचता है! राहुल ने कहा।
पर तुझे इन सब के बारे में कैसे पता चला है? खैर छोड़! मुझे इस बोझ से छुटकारा मिला! रुक मैं अभी लाता हूं। करण ने चिंतामुक्त होते हुए कहा।

राहुल वह सामान लेकर चला जाता है लेकिन करण और राज के बीच हर पल दूरियां बढ़ती जा रही थी।

आखिर कौन है वह जिसने राज को फसाने के लिए यह चाल चली? कैसे राहुल को उस तस्करी वाले सामान के बारे में पता चला? जानने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की : अनजानी रात ४


© Utkarsh Ahuja