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#इबादत सरेआम #

इश्क़ इबादत सरेआम ना करो,
दिलो-जान को यूं बदनाम ना करो।

खामोश निगाहों में जो सच्चाई है,
हो बयान , पर तुम ऐलान ना करो।

मौसम-ए-गुलशन में खिले फूल से,
उनकी खुशबू को यूं अंजाम ना करो।

रुस्वाई का सबब बन जाएगा ये ,
अपनी चाहत को सरेआम ना करो।

दिल की बातें दिल में ही रहने दो,
इन हसरतों को यूं नीलाम ना करो।