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वक्त_की_पुकार
वक्त की पुकार है, हमे सजग और सतर्क होने की,
बदलती ऋतुएं कहती हैं, अब जरूरत है सोचने की।

आसमां में बदलते रंग, हर सुबह नही रहती है ताजगी
प्रकृति की सुंदरता में, छुपी है अब बगावत की निशानी

प्रकृति की झंकार में देखो, छुपा है नवजीवन का सार,
मानव हुआ मनमौजी देखो,खुद करता प्रकृति का संहार

सावन की रिमझिम बारिश में घुली हुई है अम्लीयता
सर्दियों की धूप में बसा पराबैंगनी किरणों का आवरण

हानिकारक ये प्रभाव करता विकृत मानव के जीवन को
पर सोचने का विषय यही, ये सब देन हमे ,है तो हमारी

उठो सोचो जरा

वक्त की पुकार है, हमे सजग और सतर्क होने की,
प्रकृति की गोद में बसी है, देखो जीवन की डोर हमारी

ना बने स्वार्थी , सोचे जरा अपनी आने वाली पीढ़ी का
हम जी लिए , पर क्या देंगे इन्हे वीभत्स रूप प्रकृति का

© ऋत्विजा