...

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यूंही पता भूल कर चल गए थे। शाम ढलते ठहर गए थे।
सांस लेते रुक गए थे।ओर सूखे पत्तों की तरह बिखर गए थे।
मिला भी कोई हमको समेट ने वाला जब आंख खोली तो जलते हुए थे। बस थे कुछ बिखरे हुए थे।...