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बड़े दिनों के बाद #अतुकांत लिखने का प्रयास किया है, पढ़ें और त्रुटियों से अवगत करायें 😊🙏👇👇
*हाथ_की_रेखाएँ*
ये हाथ की आड़ी तिरछी रेखाएँ
जो फैली हैं मकड़जाल की भाँति
अक्सर इन्हें देखता निहारता रहता हूँ
इस आस में कि कहाँ है वो भाग्य रेखा
जो पूरी करेगी मेरे द्वारा देखे स्वप्नों को....
अपनी आस–उम्मीदों के साथ लेकर
इन रेखाओं के जाल में उलझ जाता हूँ
जो कुछ तो अभी भी हैं हाथों में
कुछ लुप्त हो गईं मरूथल में जल की भाँति....
तलाश है
इन रेखाओं में उस रेखा की
जो तुम्हें मुझ तक लाती हो
जो मुझे तुमसे जोड़ देती हो
क्योंकि तुम मेरे सभी सपनों का
वह अंतिम बिंदु हो , जिसके बाद मैं
हथेली के क्षेत्रफल में किसी रेखा को नहीं ढ़ूँढ़ना चाहता......
– – – –ऋषभ दिव्येन्द्र
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