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" वो हैं मेरे सामने की क्या और ख़्याल रखा जाये ,
ये इश्क मुहब्बत अब और कैसे कहा बेसुमार रखा जाये ,
दिलकश हो जाती मेरी शामे मेरी वफ़ा हयात की ,
जो कभी मिलते हैं वो मेरे ख़्याले हिज़्र से इस दिद में . "

--- रबिन्द्र राम

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