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छोटी ही सही पर एक उम्र गुजर गई, इस मुकाम तक आते-आते।
चाहता बहुत कुछ था, और बहुत कुछ खोया किसी को पाते-पाते।
कोशिशें करता हूं हर रोज़ किसी को भुलाने की मैं,
अक्सर उसी की याद आ जाती है उसे भुलाते-भुलाते।
न जाने कब खुद से ही इश्क करना भूल गया मैं,
किसी और को इश्क सिखाते-सिखाते।
और मंज़ूर ना हुई वो हसरत जो ज़हन में लिए बैठा था मैं,
कतरा-कतरा रूठ गया मेरा, किसी अपने को मनाते-मनाते।
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