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उसका दर्द कुछ ऐसा था कि पत्थर भी। पिघल ने को मजबूर हो जाये।।

बयां करते हुए वो बायां ना कर पाए।।
चाहता था सकसियत बदलनी अपनी।।
पर था मजबूर।।
बदलने भी उनको चला था।।
जिनसे सकसियत सरमाये।।
जब समझ कर समझा उसे।।
तो मैं भी थर थर उठा।।
कि क्या है ये और क्या करने चला।।

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