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जेहि पादुका सेवत भरतलाल के नैन, लंका तजिके आए दुखी विभीषण नैन। साधु-संत सुखकारी, दंडक वन भयहारी, श्रीरामकृपा से आई अवध में मंगल रैन।। ©drajaysharmayayaver
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