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बड़ी हवेली (नाइट इन लंदन - 6)
तनवीर अंधेरे में आगे बढ़ रहा था तभी अचानक उसे एहसास होता है कि कोई उसके भी पीछे है, पर तनवीर उसके आगे वाले अनजान साये को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था। इसलिए उसने आगे बढ़ना नहीं छोड़ा, कुछ देर बाद कॉरिडोर के नीचे जाने वाली सीढ़ी उतरने से पहले वह एक बार रुक कर पीछे मुड़कर देखता तनवीर बड़ी फुर्ती के साथ अंधेरे का फायदा उठाते हुए छुप जाता है, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स भी छुप जाता है।
अब वह अनजान साया इस बात से आश्वस्त हो गया था कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा था बल्कि ये उसका वहम था। अब वह निर्भीक होकर नीचे के फ्लोर पर जाने वाली सीढ़ी उतरने लगा, मौका पाते ही तनवीर भी उसके पीछे सीढ़ियाँ उतर नीचे जाने लगा, तनवीर का पीछा करने वाला अनजान शख्स भी लपक कर सीढ़ियाँ उतर जाता है।

तनवीर अब उस अनजान साये का पीछा नीचले फ्लोर के कॉरिडोर में कर रहा था, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स दबे पाँव भागते हुए तनवीर के पास पहुँचता है। वह कोई और नहीं बल्कि अरुण था, तनवीर भी उसे एक पल के लिए पहचान नहीं पाया था, पर ऊपर लगी जलती बुझती हल्की लाइट की रोशनी में अरुण को तन्नू ने पहचान लिया और अपने साथ आने का इशारा किया। अब वह अनजान साया लगैज कंपार्ट्मेंट के दरवाजे के सामने खड़ा था, उसने दरवाजा खोला और अंदर की ओर प्रवेश करने लगा, तनवीर और अरुण भी उसके पीछे चल दिए, वह साया कमांडर के ताबूत के पास जाकर रुका। ताबूत की दरारों से तेज़ लाल रोशनी निकल रही थी। वह ताबूत को खोलने की तैयारी में था, तभी उसे पीछे से अरुण और तनवीर ने धर दबोचा।

"अमां यार तन्नू ज़रा इसका चेहरा देखो ये कौन महाशय हैं" अरुण ने पकड़ में ज़ोर लगाते हुए तनवीर से कहा।

कमांडर के ताबूत से निकल रही रोशनी काफ़ी थी उस साये का चेहरा देखने के लिए, सो तनवीर ने आगे आकर उसका चेहरा देखा, तनवीर के पैरों तले जमीन खिसक गई थी जब उसने देखा वह अनजान साया कोई और नहीं बल्कि कैप्टन विक्रम प्रजापती थे। लेकिन वह अपने पूरे होश में नहीं थे ऐसा लग रहा था कि कोई उन्हें यहां तक खींच कर लाया है, तनवीर और अरुण उन्हें लगैज कंपार्ट्मेंट के बाहर तक ले कर जाते हैं, कैप्टन बहुत छुड़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन जवान लड़को के ज़ोर के आगे उनकी नहीं चलती है।
"कैप्टन... कैप्टन... कैप्टन ख़ुद को संभालिए," तनवीर ने कैप्टन को खींचते हुए कहा। दोनों उन्हे खींचते हुए कॉरिडोर में ले कर चल रहे थे, तभी अचानक कैप्टन बेहोश हो जाते हैं।
तनवीर और अरुण उन्हे उनके कैबिन तक लेकर जाते हैं और उन्हें बड़ी सावधानी से लेटा देते हैं।

" चलो शुक्र है इन्हें लाते हुए किसी ने देखा नहीं" तनवीर ने अरुण की ओर देखते हुए कहा।
"तुम्हें नहीं लगता हमें कमांडर से इस विषय पर एक बार बात करनी चाहिए", अरुण ने तनवीर से क्रोध जताते हुए कहा, फिर उसने अपनी बात जारी रखी "जब हमलोग उसे सात समंदर पार लंदन लेकर जा रहे हैं तो इस प्रकार की बेवकूफ़ी का क्या मतलब बनता है", अरुण की बाते सुनकर तनवीर भी सोच में पड़ जाता है और कुछ देर बाद कहता है" मेरे ख्याल से तुम बिलकुल सही कह रहे हो, एक तो हमलोग इतना बड़ा जोखिम उठा रहे हैं ऊपर से इस प्रकार की हरकत का क्या मतलब बनता है, चलो उसी से पता कर लेते हैं",
तनवीर ने अरुण को अपने पीछे आने का इशारा करता है।

तनवीर और अरुण अपने कैबिन से उस ताबूत की चाबी निकाल कर सीधे लगैज कंपार्ट्मेंट की ओर जाते हैं। कमांडर के ताबूत को खोलते हैं, खुलते ही कमांडर हवा में चार फुट ऊपर रुक कर अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ने और तेज़ लाल प्रकाश फैलाने के बाद उनसे कहता है "इन द नेम ऑफ क्वीन, कितना समय बीत गया हम बाहर का दुनिया नहीं देख पाया था, तुम लोग क्या पूछने आया है ये हम पहले से ही जानता है, पर हम भी क्या कर सकता था उस अजीत ने एक रात ताबूत का दरारों से लाल प्रकाश जलता हुआ देख लिया, उसने जहाज पर कुछ लोगों को इसका बारे में बताया जिसमें वो कुक और कैप्टन शामिल था, यही नहीं कल रात उसने कैप्टन को ताबूत से निकलता लाल प्रकाश निकलते हुए दिखा दिया, तब से हम दोनों को अपना दिमाग से चला रहा था, अगर हम ऐसा नहीं करता तो सारा खेल बिगड़ जाता ", कमांडर ने दोनों को भरोसा दिलाने की कोशिश की।
पर तनवीर का दिल नहीं माना उसने कमांडर से कहा" लेकिन कल रात को ही अजीत हम दोनों के पास आया था और यह कह रहा था कि वह हम दोनों को ही सबसे पहले इस बात के बारे में जानकारी दे रहा था, फिर आज पूरा दिन कैप्टन ने हम दोनों को इस बारे में कुछ नहीं पूछा", तनवीर ने थोड़ा एतराज जताया।
"अरे जब वह तुम्हारे पास से सारी कहानी बताने के बाद गया तो कल रात को ही अजीत ने कैप्टन को ताबूत से निकलता प्रकाश दिखा दिया था और तभी मैंने इन दोनों के दिमाग़ अपने काबू में कर लिया था, अजीत तो दो दिन पहले ही ताबूत के बारे में जान गया था, उसने सबसे पहले बनवारी को ये बात बताया लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ, तुम दोनों से उसने झूठ बोला था", कमांडर ने अपनी बातों से ख़ुद की सफ़ाई दी जिसे सुन तनवीर और अरुण को सारा मामला समझ में आ गया।

फ़िर कमांडर ने उनसे कहा" ये हमारा आखरी सफ़र है, इसलिए हमारा तुम दोनों से रिक्वेस्ट है कि ताबूत को जंजीरों से मत बांधों क्यूँकि कोई भी रात को यहाँ ड्यूटी करने वाला इसे देख सकता है, हम अपना हिफाज़त इंसानों से कहीं अच्छा से कर सकता है, चिन्ता का कोई बात नहीं हम उन सभी का ब्रेन वॉश कर देगा जिसने ये सब कुछ देखा है", कमांडर ने उन दोनों को समझाते हुए कहा।

" अगर रात में ताबूत के बाहर निकले और किसी ने देख लिया तो फिर क्या होगा ", अरुण ने आशंका जताते हुए पूछा।
कमांडर ने उसकी ओर देखते हुए कहा " सुन दारूबाज तेरा तो पता नहीं पर कमांडर ब्राड शॉ का ज़ुबान का वजन 300 साल पहले भी था और 300 साल बाद मरने का बाद भी है, एक बार बोल दिया कि इस जहाज पर कोई भी ये नहीं जान पाएगा कि ताबूत में क्या है, बस ताबूत लगे कुंडों पर ही ताला मारो जिसे हम अपना सुपर नैचुरल पॉवर से खोल बंद कर सकता है, क्यूँकि हम चाहता तो जंजीर तोड़ भी सकता था लेकिन फिर उसे कौन जोड़ता, सबको पता चल जाता और भगदड़ मच जाता ", कमांडर ने अरुण को फटकार लगाते हुए अपनी बात को दोनों के सामने रखा, दोनों मान गए और तनवीर अपने कैबिन की ओर दौड़ पड़ा, अपने सामान से ताबूत के पुराने दो ताले लेकर आने के लिए, उसने कमांडर के ताबूत में जाते ही ताबूत के कुंडों को बंद कर उन पर ताला लगा दिया। दोनों ने मिलकर जंजीर को समेट कर एक कोने में रखा और अपने कैबिन की ओर चल दिए। रात भर की भागदौड़ में पता नहीं चल पाया कि कब सुबह हो गई और घड़ी में 4 बज कर 45 मिनट हो गए, कुछ ही देर में सुबह की परेड शुरू होने वाली थी। रात भर कमांडर ने उनकी अच्छी खासी परेड करा दी थी। वह काफ़ी थक चुके थे और उनका बदन दर्द से टूट रहा था। अपने कैबिन में जाते ही दोनों बिस्तर पर खुद को फेंक देते हैं मानो जन्मों से उसी की तलाश रही हो। कुछ देर बाद उन्हें गहरी नींद आ जाती है।

"तनवीर... वेक अप, तनवीर...सुबह की परेड हो चुकी है और तुम दोनों अभी तक सो रहे हो... अरे भाई कैबिन का दरवाज़ा तो खोलो... तनवीर... जाग जाओ" कैप्टन विक्रम ने तन्नू और अरुण के कैबिन के दरवाजे को पीटते हुए कहा। कुछ देर बाद अरुण ने उठ कर दरवाजा खोला, कैप्टन ने जल्दी ही दोनों को अपने कैबिन में बुलवाया।
दोनों फ्रेश होकर कैप्टन के कैबिन में पहुँचे, कैप्टन ने उनकी तरफ देखते हुए कहा" नहीं... नहीं... मेरे जहाज पर ये डिसिप्लिन नहीं चलेगा... कोई भी मेरे नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता है, खासकर तब, जब आप एक अवैध मेहमान के रूप में हों, जिनकी निजी तौर पर ज़िम्मेदारी जहाज के कैप्टन ने ली हो, चलिए आप ही बताइए क्या आपका दिया हुआ पैसा इतना है कि जहाज के सभी कर्मचारियों में बांट सकते हैं... नहीं... आपकी ज़िम्मेदारी मेरी है और अगर मैं ही अपने जहाज की डिसिप्लिन तोड़ने की छूट दे दूँ, तो जहाज के सभी कर्मचारियों को मेरे ऊपर उंगली उठाते देर नहीं लगेगी, इसलिए उन्हें पैसों की बात न बता कर आप दोनों को एक मजबूर स्टूडेंट के रूप में नज़र आना था, ये बात मैंने आपको पहली मुलाकात में ही बता दी थी, फिर भी आप दोनों ने आज इस जहाज का डिसिप्लिन तोड़ दिया है, सुबह परेड से गायब रहे और फिर डाइनिंग हॉल में ब्रेकफास्ट के लिए भी नहीं पहुँचे... नो... नो... ये नहीं चलेगा, आज तो मैं छोड़ रहा हूँ क्यूँकि पहली बार है, पर कल से बिलकुल समय पर चलना पड़ेगा... एम आई क्लियर... अब आप दोनों जा सकते हैं ", कैप्टन ने एक ज़ोरदार फटकार लगाते हुए दोनों को उनकी ड्यूटी पर लगवा दिया, आज दोनों को कॉरिडोर की सफाई का काम दिया गया था। उन दोनों को ये जानकर प्रसन्नता हुई कि कैप्टन को कल रात के हादसे के बारे में कुछ भी याद नहीं था, इसलिए दोनों उनसे माफी मांग कर कैप्टन के कैबिन से मुस्कुराते हुए निकल लिए।

दोनों अपना काम मन लगाकर कर रहे थे, धीरे धीरे वक़्त और बीतता है और दोपहर के 2:00 बजे हुए थे, लंच का समय हो गया था। दोनों अपना काम ख़त्म करते ही हाँथ मुँह धोकर डाइनिंग हॉल में पहुंच गए। वहाँ पहुँचते ही उनसे सबने सुबह परेड में न आने की वजह पूछी, उन दोनों ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। डाइनिंग हॉल में कैप्टन के पहुंचते ही सबसे पहले एक कुक उनका खाना सामने की मेज़ पर लगा देता है, अब उनकी पलटन के सारे सदस्य कतार में लग कर खाना लेते हैं और टेबल पर बैठ जाते हैं खाना खाने के लिए, फिर कैप्टन के शुरुआत करते ही, सभी खाने की शुरुआत करते हैं।

सभी शांति के साथ बैठकर खाना खा ही रहे थे कि थोड़ी ही देर में जहाज के कुछ गार्ड्स सायरन बजाते हैं जो कि एक खतरे की निशानी थी, उसे सुनते ही कैप्टन खाना छोड़ कर डेक की ओर दौड़ पड़ते हैं, उनके पीछे ही डाइनिंग हॉल में बैठे उनके पलटन के सदस्य भी भाग खड़े होते हैं। ऐसा कौन सा खतरा बीच समंदर में आ गया था जिसका सायरन सुन सभी इतनी बुरी तरह भाग खड़े हुए ये जानने के लिए तनवीर और अरुण भी सबसे आख़िर में उनके पीछे भागे।

जहाज पर किसी खतरे का अंदेशा मिलना एक बिन बुलाए मुसीबत की निशानी थी। तनवीर डेक पर जाते समय मन में यही विचार लिए हुए था कि पहले ही कमांडर की वजह से कम मुसीबत न थी और अब कोई अनजान खतरा उनकी तरफ बढ़ता चला आ रहा है। उन दोनों को अंदर से ये भय खाए जा रहा था कि कहीं लंदन तक का ये समुंद्री सफ़र उनके जीवन का आखिरी सफ़र न हो।
-Ivan Maximus

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