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सखी,,,,,
उससे लड़ने में मज़ा आता है,,,सखी
वो बड़े प्यार से मुझे मनाता है,,,सखी
कभी चूमता है माथा मेरा ,
कभी बाल मेरे सहलाता है,,,सखी
जो फिर भी न मानूं मैं,
तो झुमके नए दिलाता है,,,सखी
मेरी नकल उतार कर,
झूठी नाराज़गी जताता है,,,सखी
दीवानगी क्या कहूं उसकी,
मेरी हथेली पर जहां अपना सजाता है,,,सखी
© char0302
वो बड़े प्यार से मुझे मनाता है,,,सखी
कभी चूमता है माथा मेरा ,
कभी बाल मेरे सहलाता है,,,सखी
जो फिर भी न मानूं मैं,
तो झुमके नए दिलाता है,,,सखी
मेरी नकल उतार कर,
झूठी नाराज़गी जताता है,,,सखी
दीवानगी क्या कहूं उसकी,
मेरी हथेली पर जहां अपना सजाता है,,,सखी
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