...

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मीरा...
चाह क्या होती है
मीरा ने कुछ यूं सिखाया है।
विष के प्याले में भी
उसने गिरधर को उसने पाया है।
उस रानी ने जोगन बन
बस हरि नाम अपनाया है।
मीरा के प्रेम शक्ति को जग
आज भी भूल न पाया है।

मीरा रानी से जोगन बन गयी।
स्वर्ण की माला
न जाने कब पुष्प की बन गयी।
हाथ मे चूड़ी विणा बन गयी ।
पगली मीरा कृष्ण दीवानी बन गयी।
रानी से कुछ यूं जोगन बन गयी ।

पत्तर से आँशु भेहते दिखते थे।
मीरा को लगे काटे केशव को भी चुभते थे ।
मीरा जो खाया करती थी
मोहन उस्का भोग किया करते थे।
उस जोगन को अक्सर कृष्ण मिला करते थे।
उस संग नृत्य किया करते थे ।
सावन में झूला झुला करते थे ।
रूठी मेरा कृष्ण मनाया करते थे ।


मधुर थी वो मीरा की विणा ।
मधुर थी वो मीरा की
प्रभु गिरधर की लीला।

आज भी मीरा के प्रेम की
आवाज़ सुनाई देती है।
भक्त और भगवान की ये अटूट
बंधन की डोर आज भी दिखाई देती है।
मीरा की तान बंसी की पुकार आज भी सुनाई देती है ।।


Kajal Pathak...
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