...

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कल की परवाह
मुझे मेरे आने वाले कल की रत्ती भर भी परवाह नहीं,
मैंने स्वयं को इस विराट अस्तित्त्व के हाथों में छोड़ दिया है, मैंने स्वयं को इस परम सत्ता के हाथों में लेटा दिया है,
जो चाँद सम्भाल रहा है, जो इतने तारों को सम्भाल रहाहै, जो इतनी नदियों को सम्भाल रहा है, जो इतने सागरों को सम्भाल रहा है, जो इतनी ऋतुओं को सम्भाल रहा है, वह मुझे भी सम्भाल ही लेगा, जो इतने विराट ब्रह्मांड को सम्भाल रहा है, वह मेरी भी छोटी सी लहर सम्भाल ही लेगा, मेरी क्या औकात ?