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सत्ता की होड़
सत्ता की ये कैसी होड़ लगी है
सिंहासन की ओर लम्बी दौड़ लगी है
निकल आए हैं महलों के भी राजकुमार
जो कल तक थे बड़े सुकुमार
कड़कती धूप में
आज उनके भी वादों की झोड़ लगी है
सत्ता की ये कैसी होड़ लगी है

अब दिखती है उनको भी
गरीबी और बेरोजगारी
जो सुख से थे अपने महलों में बरसों
आज नज़र आईं उनको भी
बेचारी जनता की लाचारी
अब गरीबों के घर भी
उनको छोटे न दिखते हैं
साहबजादे झोपड़ियों में भी ढूकते हैं
बड़े - बड़े वादों की कुछ ऐसी होड़ लगी है
जनता बेचारी अब भी ठगी की ठगी है

कुछ है ऐसे भी राजनेता
जाति - पति के नाम पर ही
जो सिंहासन को है अपना कहता
बात ये बड़ी बेढंग है
की हिंदू,...