...

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" बिखर "

निखर जाएगा समझौता कर ले ...
बिखर जायेगा ना हठ कर बे !!

शीशा कहाँ टिकता गिर कर रे ...
ज़िंदगी कहाँ ठहरती डर कर बे !!

थोड़ा जी भी ले संवर कर रे ...
ठहरे हवा भी भंवर कर बे !!

मुरझाए फूल भी निखर कर रे ...
चाहे हो मंदिर चढ़ाया याँ कबर पर बे !!

अपना ले सच, है सब टीका उसकी नदर पर रे ...
बिखरेगा आख़र न गदर कर बे !!

पूरी ना हो हर मुराद यूँ ज़बर कर रे ...
दुआ 🤲 भी हो कबूल आख़र सब्र कर बे !!

सुखविंदर ✍️🌄✍️
© Sukhwinder

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