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शायद
शायद सब कुछ पहले से ही निर्धारित है
या कुछ भी नहीं
शायद हम बस चलते रहने के लिए बने हैं
पर रुकना कहाँ है?
शायद ये पहले से ही लिखा हुआ है
या हमें लिखना है,
शायद हमारे ख्याल भी हमारे नहीं हैं
या बस ख्याल ही है जो हमारे हैं,
शायद दिशाएं तय है पहले से ही
या ये हम तय करेंगे
जो हमें एक छोर पर लाकर खड़ा कर देगी
रास्ते के अंत पर,
और हम वहाँ रुक जायेंगे,
शायद इस तरह हम अपना अंत खुद तय करते हैं
या तो कुछ तय ही नहीं है
बस सब कुछ हुए जा रहा है
अकस्मात,अनिर्धारित,अविरल,
अपने-आप
शायद इन सवालों को समझ लेना ही अंत है
या तो इनको निकाल पाना खुद से
शायद चलने के क्रम में लोगों का मिलना तय है
या तो बस कोई मिल जाता है यूँ ही
जिसके साथ चलना आसान लगने लगता है,
पर कहीं बीच में ही वो अपना सफर खत्म कर देता है
और हमारा फिर भी जारी रहता है
पता नहीं क्यों?
हम तब भी नहीं रुकते
और अकेले चलते रहते हैं,
शायद हम बस चलने के लिए तो बने ही हैं
और हम बने हैं यादों को बटोरने के लिए,
शायद रास्ते के अंत पर वो सारी यादें
हमारी पुंज़ी होती होंगी,
जो हमने इकठ्ठा करी किसी के साथ या कभी अकेले,
और हमारी कुंजी भी,
आत्मा को शरीर के ताले से मुक्त कराने की
और शायद यादें बटोरना ही हमारे चलने का लक्ष्य था
जो हमने बिना जाने ही पुरा कर दिया
© meteorite
या कुछ भी नहीं
शायद हम बस चलते रहने के लिए बने हैं
पर रुकना कहाँ है?
शायद ये पहले से ही लिखा हुआ है
या हमें लिखना है,
शायद हमारे ख्याल भी हमारे नहीं हैं
या बस ख्याल ही है जो हमारे हैं,
शायद दिशाएं तय है पहले से ही
या ये हम तय करेंगे
जो हमें एक छोर पर लाकर खड़ा कर देगी
रास्ते के अंत पर,
और हम वहाँ रुक जायेंगे,
शायद इस तरह हम अपना अंत खुद तय करते हैं
या तो कुछ तय ही नहीं है
बस सब कुछ हुए जा रहा है
अकस्मात,अनिर्धारित,अविरल,
अपने-आप
शायद इन सवालों को समझ लेना ही अंत है
या तो इनको निकाल पाना खुद से
शायद चलने के क्रम में लोगों का मिलना तय है
या तो बस कोई मिल जाता है यूँ ही
जिसके साथ चलना आसान लगने लगता है,
पर कहीं बीच में ही वो अपना सफर खत्म कर देता है
और हमारा फिर भी जारी रहता है
पता नहीं क्यों?
हम तब भी नहीं रुकते
और अकेले चलते रहते हैं,
शायद हम बस चलने के लिए तो बने ही हैं
और हम बने हैं यादों को बटोरने के लिए,
शायद रास्ते के अंत पर वो सारी यादें
हमारी पुंज़ी होती होंगी,
जो हमने इकठ्ठा करी किसी के साथ या कभी अकेले,
और हमारी कुंजी भी,
आत्मा को शरीर के ताले से मुक्त कराने की
और शायद यादें बटोरना ही हमारे चलने का लक्ष्य था
जो हमने बिना जाने ही पुरा कर दिया
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