...

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ताज़ और मुमताज
तुमरी आँखे खूबसूरत है तभी तो तुम्हे ताजमहल भी खूबसूरत लगता है
वरना है तो एक मकबरा ... जो
मुमताज की मिट्टी से है पुता हुआ
शाहजहां. की मुहब्बत से धुला हुआ
जहाँ आज भी झींगुरॉ की लौरिया. सुनाई पड़ती है..... जहाँ निगोदिन आस लिये मुमताज़ मकबत्रे से बाहर आने की आतुरता
से प्रतिक्षा कर रही है कि वो बाहर आकर
यमुना के तट पर पहुचे और अपने अतीत की मुहब्बत क़ो टटोल कर पुनर्जीवित कर सके
परसराम अरोड़ा