...

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मां का त्याग
किसी और का घर संभालने के लिए
अपना घर त्याग  देती है
खुद को उलझा कर कठिनाई में
बच्चो की जिंदगी सवार देती है

कभी धरती मां बनकर
पेट पाल लेती है
और कभी बनकर हवाएं
जिस्म को स्वांस देती है

कभी बनके गंगा मां
बच्चो की प्यास बुझाती है
और कभी जलाने को रावण
वो आग बन जाती है

कभी कोमलता में लिपटकर
बच्चो की हसी बन जाती है
अगर छीन ले कोई मुस्कुराहट
बच्चो की
तो वही मां चंडी बन जाती है

हर एक रूप का त्याग करके
वो बच्चो के लिए
मां बन जाती है
इतनी गहराई है मां में
फिर केसे बच्चो के लिए
खुद को फनह कर जाती है




© akash Masti and inspiration