...

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समझदारी

उसके राज बढ़ते गए, उसके सवाल भी।
वो पहले पूछा करती, फिर जासूसी करती।
बातें बहुत थी जिनपर शक करती थी।
काश ये कभी सच ना हो ये दुआ भी करती थी।
फिर उसने अपनी बेवफाई को छुपाया नहीं,
गुजरेगी तूफान से वो, घबराया नहीं।
मैं मर्द हूं कर सकता हूं वो मेरे काबिल भी है।
तुम्हारे तरह रोता नहीं, जो चाहूं हासिल भी है।
आज उसके सब सवाल मिट गए,
वो रोई नहीं है या निशान मिट गए।
वो पूछती नहीं अब कुछ,बताती भी नहीं है।
उसके हक छीनें नहीं,अपना जताती भी नहीं है।
दूर किया नहीं उसको, पास खुद जाती भी नहीं है।
उसे अच्छा लग रहा है, झंझट मिट गया है।
पर पता नहीं है उसके अंदर वो मर गया है।