नयना न रोए
एक पौधा था जिसे पाली थी मालिनी
फूल खिला मगर रख न सकी सम्भाल कर,
गीत सुनाया करती थी उसे देशप्रेम का,
मगर असर न हुआ उसपर उस गीत का
शहरी चमकदमक ले गयी उसे उड़ाकर।
अंतरात्मा रो रही थी,आह न निकली मुंह से
पथराई आंखें लेकर बैठी रहती थी द्वार पर,
आत्मा रोई बार-बार, नयना...
फूल खिला मगर रख न सकी सम्भाल कर,
गीत सुनाया करती थी उसे देशप्रेम का,
मगर असर न हुआ उसपर उस गीत का
शहरी चमकदमक ले गयी उसे उड़ाकर।
अंतरात्मा रो रही थी,आह न निकली मुंह से
पथराई आंखें लेकर बैठी रहती थी द्वार पर,
आत्मा रोई बार-बार, नयना...