मैं, तुम बन जाती हूँ.!
जब बहुत याद आते हो तुम
क्या कहूँ मैं क्या कर जाती हूँ
कभी रो लेती हूँ ख़ुद से लिपट कर
तो कभी ख़ुद ही से लड़ जाती हूँ
कभी मिलती हूँ गले अपने अक़्स से
इसे तुम समझ कर
कभी अपने ही अक़्स से डर जाती...
क्या कहूँ मैं क्या कर जाती हूँ
कभी रो लेती हूँ ख़ुद से लिपट कर
तो कभी ख़ुद ही से लड़ जाती हूँ
कभी मिलती हूँ गले अपने अक़्स से
इसे तुम समझ कर
कभी अपने ही अक़्स से डर जाती...