...

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मैं, तुम बन‌ जाती हूँ.!
जब बहुत याद आते हो तुम
क्या कहूँ मैं क्या कर जाती हूँ
कभी रो लेती हूँ ख़ुद से लिपट कर
तो कभी ख़ुद ही से लड़ जाती हूँ
कभी मिलती हूँ गले अपने अक़्स से
इसे तुम समझ कर
कभी अपने‌ ही अक़्स से डर जाती हूँ
कभी मेरा चेहरा बन‌ जाता है
चेहरा तुम्हारा
कभी तुम्हारी आँखों से ख़ुद को
तकती जाती हूँ
कभी मुस्कुरा पड़ती हूँ लबों से
कभी दिए हुए ग़मों से तुम्हारे
सिसकती जाती हूँ
जब भी धड़कता है दिल सीने में
बस उस वक़्त तुम्हें याद कर जाती हूँ
और‌ सुनो.! जब याद आते हो तुम
मैं, मैं नहीं रहती तुम बन जाती हूँ.!