गलतफहमी
एक मैं था, एक तुम थीं और था मेरा ये दिल
कुछ ज़ख्म भरे तुमने, और ग़म में हुई शामिल
इज़हार किया मैंने, इकरार किया तुमने
तुम छोड़ गयीं एक दिन, फिर दर्द हुआ हासिल
सावन के मौसम में, पतझड़ के आलम हैं,
आँसू भी सूखे हैं, क्या इतनी सज़ा कम है।
इंतज़ार नहीं होता, अब तेरा दिल से
इंतज़ार किया बरसों, क्या इतना किया कम है।
मेरी आँखों...
कुछ ज़ख्म भरे तुमने, और ग़म में हुई शामिल
इज़हार किया मैंने, इकरार किया तुमने
तुम छोड़ गयीं एक दिन, फिर दर्द हुआ हासिल
सावन के मौसम में, पतझड़ के आलम हैं,
आँसू भी सूखे हैं, क्या इतनी सज़ा कम है।
इंतज़ार नहीं होता, अब तेरा दिल से
इंतज़ार किया बरसों, क्या इतना किया कम है।
मेरी आँखों...